य हाँ वो हर कोई अपने स्तर पर कुछ न कुछ अच्छा करने में जुटा हुआ है जिसके मन में देश को बदलने का ख़याल रह रह कर उठता है. और ऐसा हर इंसान कह...
यहाँ वो हर कोई अपने स्तर पर कुछ न कुछ अच्छा करने में जुटा हुआ है जिसके मन में देश को बदलने का ख़याल रह रह कर उठता है. और ऐसा हर इंसान कहीं न कहीं सोचता है कि वह औरों से कुछ बेहतर ज़रूर कर रहा है. लेकिन कुछ एक ऐसे इंसान आपके सामने आ जाते हैं जिनके सामने आप खुद को बहुत छोटा पाते हैं. जीवन ही तो लगभग सब का एक जैसा ही है. वही जिम्मेदारियां और वही 9 से 6 की जी तोड़ मेहनत, कितनों की तो इससे भी ज़्यादा. और यही वो कारण भी है जो हम सबके लिए बहाना भी बन जाता है अपने सपनों से भागने का और कुछ बहुत अच्छा ना कर पाने का. हम सब अपने आस पास जब कुछ बुरा देखते हैं तो मन ही मन अफ़सोस करते हैं कि “यार काश मेरे ऊपर ये जिम्मेदारियां ना होतीं तो मैं ज़रूर इस बुरे को अच्छे में बदलने के लिए कुछ प्रयास करता, खैर कोई ना जब मैं अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाऊंगा तो ज़रूर कुछ अच्छा करूँगा.” मगर अफ़सोस ना कभी हमारी जिम्मेदारियां खत्म होती हैं और ना हम कभी कुछ बहुत अच्छा कर पते हैं.
लेकिन कुछ जुनूनी टाइप बंदे होते हैं जिन्हें जिम्मेदारियां खत्म होने का इंतज़ार करने से अच्छा ये लगता है कि वो बुरे को अच्छे में बदलने के प्रयास को ही अपनी ज़िम्मेदारी मान लें. ऐसे ही एक जुनूनी को मैं जनता हूँ. ये हैं हम सब के प्रिय आशीष शर्मा भाई. मेरा सौभाग्य ही है कि मैं ऐसे एक इंसान से मिला हूँ जिसमे बदलाव के प्रति समर्पित हो जाने की हिम्मत है.

जानते हैं क्यों इनके सर पर ऐसा जुनून सवार हो गया. क्योंकि इन्हें बदलाव लाना है और उस बदलाव के लिए इन्होंने सोचने से अच्छा कुछ कर दिखाना सही समझा. आशीष भाई उन्मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत पूरे देश में पैदल यात्रा कर के लोगों को इस बात के लिए जागरूक कर रहे हैं कि वो सब बाल भिक्षा के खिलाफ़ कोई ठोस कदम उठायें और भारत में एक भी बच्चा भीख मांगता हुआ ना दिखे.
अभी कुछ दिन पहले ही एक सोशल मिडिया पर कमलेश नाम का बालक बहुत चर्चित हुआ. उसके चर्चित होने का कारण उसकी कोई अनोखी प्रतिभा नहीं अपितु उसका हद से ज़्यादा नशा करना था. हम सबने वो वीडियो देखा कोई उसे और उसकी हरकतें देख कर हंसा, किसी ने उसके लिए अफ़सोस जताया तो किसी ने उसे यह कह कर गलियाँ दीं कि साला इतनी सी उम्र में नशा करता है. लेकिन शायद ही किसी ने ये सोचा हो कि उसकी हालत का ज़िम्मेदार वो खुद नहीं है, ज़िम्मेदार है उसके आसपास का माहौल जिसने उसे सिखाया कि बेटा भीख मांगना, कचरा बिनना और उससे जो पैसे आयें उससे नशा करना ही असल ज़िन्दगी है, उसके लिए कोई ऐसा नहीं था जो सबसे सलाह करे कि भाई कमलेश को क्या बनाना है, उसका गणित ठीक नहीं उसे इस पर मेहनत करनी चाहिए, कमलेश आज कल पढाई में ध्यान क्यों नहीं दे रहा. उसे जैसा माहौल मिला उसने उसे वैसे ही अपना लिया. हमें बच्चपन से सिखाया जाता है कि सारा विश्व ही हमारा परिवार है मगर हम तो विश्व छोड़ो अपने आस पास को भी अपना नहीं मान पाते.
मगर आशीष भाई ने बदलाव का मन बना लिया और निकल पड़े है पैदल ही लोगों को ये समझाने कि हमें कुछ बदलना है तो सबसे पहले अपने देश की उस नींव को मजबूत करना होगा जिसके दम पर हमारे सपनों के भारत का पूरा भार पड़ने वाला है. वो नन्हें कंधे मजबूत होंगे तभी आने वाला कल सुरक्षित और सुंदर होगा. आशीष भाई अपनी यात्रा के दौरान लोगों से संस्थाओं से, स्कूल कॉलेज के बच्चों, अध्यापकों और प्रधानाध्यापकों से मिलते हैं उन्हें अपने उन्मुक्त भारत अभियान के बारे में समझाते हैं. लोग ये देख कर उनसे जुड़ भी रहे हैं कि अगर एक बाँदा अपनी सुख सुविधाओं, अपने सपनों, अपनी नौकरी और भविष्य तक को किनारे रख कर इतने बड़े अभियान को अकेले दम पर शुरू कर सकता है तो क्या हम उसका साथ नहीं दे सकते, उसकी आवाज़ नहीं बन सकते ?
कल आशीष भाई का जन्मदिन था, उनके अभियान में उनके साथ जुड़ना तथा उनकी आवाज़ बनने से बेहतर उपहार उनके लिए कुछ नहीं हो सकता. आप सब इनसे जुड़ें और अपने स्तर से इनका जितना हो सके उतना साथ दें. सच में मुझे आज इस बात का गर्व महसूस होता है कि भले ही कुछ मिनटों के लिए ही सही मगर मेरी मुलाकात एक ऐसे इंसान से हुई है जिसने बदलाव के लिए सोचा ही नहीं बल्कि साहसिक कदम भी उठाया. आशीष भाई आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं. ईश्वर से यह प्रार्थना है कि आपका हौंसला और हिम्मत इसी तरह बना रहे और आप निरंतर ऐसे ही आगे बढ़ते रहें. आप उम्मीद हैं उस हर बच्चे की जिसने कुछ बेहतर होने उम्मीद लगभग छोड़ ही दी है.
धीरज झा
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