ब च्चे दो तरह के होते हैं एक वो जो खुद सीख जाते हैं । इन्हे हमेशा बदमाश बच्चों के रूप में ही देखा जाता है । किसी चीज़ के प्रती इतनी जिज्ञ...
बच्चे दो तरह के होते हैं एक वो जो खुद सीख जाते हैं । इन्हे हमेशा बदमाश बच्चों के रूप में ही देखा जाता है । किसी चीज़ के प्रती इतनी जिज्ञासा होती है इनमें के ये बिना किसी से पूछे ही अपना दिमाग चला देते हैं फिर चाहे बड़े से बड़े नुक्सान क्यों ना हो जाये और बदले में जात जूतों की बरसात क्यों ना हो जाये । घर से लेकर रिश्तेदार , स्कूल वाले आस पड़ोस वाले सब इनके आतंक से भयभीत रहते हैं । और दूसरे वो बच्चे होते हैं जिन्हे ज़िंदगी धक्के दे दे कर सिखाती है । उन्हे शांत रहने के बदले घर स्कूल पड़ोस से वाह वाही चो मालती है पर ज़िंदगी इतना लतियाती है के उन्हे सीखना पड़ता है ।
मैं हमेशा से इन दूसरे किस्म के बच्चों में रहा हूं । घर में तो नही पर आस पड़ोस स्कूल में मेरा नाम हमेशा शांत बच्चों में आया । और मुझे भी ज़िंदगी ने लतिया कर ही जीना सिखाया । घर के बाहर शर्मीला सा था । किसी को कुछ कहना नही कोई कुछ बोल दे फिर भी चुप चाप सुन लेना । दोस्त कम थे । छोटा था तब घर का कुछ सामान लाने बराबर बाज़ार जाया करता । रास्ते में एक दुकान आती थी वहाँ एक लड़का जो शक्ल से ही पहली वाली किस्म का लगता था बैठा होता । उम्र में मुझ से काफी बड़ा था । ना जाने उसे मुझ से क्या दिक्कत थी जो मुझे आते जाते बार बार चिढ़ाया करता । एक दो बार मैने अनसुनी कर दी । पर उसका चिढ़ाना बढ़ता गया ।
मुझ पर कोई हंसे मुझे बचपन से पसन्द नही था । इसीलिये मैं लोगों में कम जाता था । ये मेरी कमज़ोरी थी पर मेरी आदत बन चुकी थी । अब उसका चिढ़ाना इतना बढ़ गया था के मैं बाज़ार जाने से डरने लगा । घर से चार बातें सुन लेता पर बाज़ार जाने को तैयार ना होता । अगर मजबूरी में जाना भी पड़ता तो रास्ता बदल कर जाता । कभी कभी रो भी दिया करता पर घर ना बताता । क्या बताता के कोई मुझे छेड़ता है । मेरे उल्ट् सीधे नाम ले कर चिढ़ाता है मुझ पर हँसता है ! आज ये छोटी बात लगती है पर उस वक्त ये मोहब्बत से भी बड़ी समस्या थी मेरे लिये । जब मैं एक दम तंग हो गया । जब मुझे हर रास्ता बन्द होता नज़र आने लगा तो मैं एक दिन सोचते सोचते बाज़ार की तरफ निकल गया । क्यों निकला पता नही पर निकल पड़ा ।
मन डर रहा था पर लग रहा था जैसे ज़िंदगी धकेल रही है । कह रही है " आगे बढ़ किस्सा ख़त्म कर ये तेरी ज़िंदगी का इतना सा ही हिस्सा था अब और किस्से शुरू करने हैं इस लिये इसे समाप्त कर । मैं चलता चलता उस लड़के की दुकान के पास जा कर खड़ा हो गया । और मुझे देखते ही उसका हँसना , मुझे चिढ़ाना सब चालू हो गया पर आज मैं वहाँ से चुप चाप नही गुज़रा आज मैं वहाँ पर सर झुका के नही खड़ा था आज मैने पहले उसकी आँखों में आँखें डाल उसकी बकवास सुनी और अगले ही पल उसकी दुकान की सीढ़ियों पर चढ़ते हुये काऊंटर के पास जाकर उसका कॉलर पकड़ के चटाक से एक रेपटा दिया । ये मैने इतनी जल्दी किया के ना वो समझ सका ना मैं । मुझे पता था अब वो मुझे बहुत मारेगा इसलिये उसके कुछ समझने से पहले मैं भाग निकला । अब मैं डरा हुआ था मगर मन में चैन था तस्सली थी ।
आज मैं आज़ाद हुआ था । मैने सोच लिया था के इस बार मुझे मारा तो उसका सर खोल दूंगा । आज ज़िंदगी ने ज़बरजस्ती मुझे बाग़ी बना दिया था । डर तो था पर उसके साथ उस डर से लड़ने की हिम्मत थी । वो दिन बीत गया । अगले दिन घर से मुझे बाज़ार भेजा गया । पैर काँप रहे थे मगर मैने रास्ता नही बदला उसकी दुकान वाले रास्ते पर ही चलता रहा । उसकी दुकान के सामने आया तो देखा उसने मुझे देख कर मुँह फेर लिया । मैं नही जानता ऐसा क्यों हुआ किस वजह से हुआ । वो थप्पड़ शायद इतनी ज़ोर से लगा के उसके बड़प्पन का सारा ग़रूर चूर हो गया था । बस उसी पल से बात समझ आगयी के आप जितना दबेंगे लोग उतना आपको दबाते रहेंगे ।
आपको एक हद तक ही सहना पड़ता है । उसके बाद भी आप सहते हैं तो आपकी तकलीफों के ज़िम्मेदार आपको दबाने वाला नही बल्कि आप ख़ुद होंगे । ज़िंदगी ने आज ये सबक सिखा दिया था । उसके बाद ज़िंदगी बढ़ती रही स्कूल बीता कॉलेज बीता कई तरह के लोगों का सामना हुआ पर मुझ पर किसी ने हँसने या मुझे दबाने की हिम्मत नही की । क्यों की मैने उन्हे मौका ही नही दिया । मैं ये नही कह रहा के हिंसक होना सही है मैं ये कह रहा हूं के सहते रहना गलत है । बाकी तो आप खुद बेहतर जानते हैं...
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धीरज झा...
Keywords : Hindi Article, Happy Children's Day, Essay On Bullying, Children's Habits, Memories
मैं हमेशा से इन दूसरे किस्म के बच्चों में रहा हूं । घर में तो नही पर आस पड़ोस स्कूल में मेरा नाम हमेशा शांत बच्चों में आया । और मुझे भी ज़िंदगी ने लतिया कर ही जीना सिखाया । घर के बाहर शर्मीला सा था । किसी को कुछ कहना नही कोई कुछ बोल दे फिर भी चुप चाप सुन लेना । दोस्त कम थे । छोटा था तब घर का कुछ सामान लाने बराबर बाज़ार जाया करता । रास्ते में एक दुकान आती थी वहाँ एक लड़का जो शक्ल से ही पहली वाली किस्म का लगता था बैठा होता । उम्र में मुझ से काफी बड़ा था । ना जाने उसे मुझ से क्या दिक्कत थी जो मुझे आते जाते बार बार चिढ़ाया करता । एक दो बार मैने अनसुनी कर दी । पर उसका चिढ़ाना बढ़ता गया ।
मुझ पर कोई हंसे मुझे बचपन से पसन्द नही था । इसीलिये मैं लोगों में कम जाता था । ये मेरी कमज़ोरी थी पर मेरी आदत बन चुकी थी । अब उसका चिढ़ाना इतना बढ़ गया था के मैं बाज़ार जाने से डरने लगा । घर से चार बातें सुन लेता पर बाज़ार जाने को तैयार ना होता । अगर मजबूरी में जाना भी पड़ता तो रास्ता बदल कर जाता । कभी कभी रो भी दिया करता पर घर ना बताता । क्या बताता के कोई मुझे छेड़ता है । मेरे उल्ट् सीधे नाम ले कर चिढ़ाता है मुझ पर हँसता है ! आज ये छोटी बात लगती है पर उस वक्त ये मोहब्बत से भी बड़ी समस्या थी मेरे लिये । जब मैं एक दम तंग हो गया । जब मुझे हर रास्ता बन्द होता नज़र आने लगा तो मैं एक दिन सोचते सोचते बाज़ार की तरफ निकल गया । क्यों निकला पता नही पर निकल पड़ा ।
मन डर रहा था पर लग रहा था जैसे ज़िंदगी धकेल रही है । कह रही है " आगे बढ़ किस्सा ख़त्म कर ये तेरी ज़िंदगी का इतना सा ही हिस्सा था अब और किस्से शुरू करने हैं इस लिये इसे समाप्त कर । मैं चलता चलता उस लड़के की दुकान के पास जा कर खड़ा हो गया । और मुझे देखते ही उसका हँसना , मुझे चिढ़ाना सब चालू हो गया पर आज मैं वहाँ से चुप चाप नही गुज़रा आज मैं वहाँ पर सर झुका के नही खड़ा था आज मैने पहले उसकी आँखों में आँखें डाल उसकी बकवास सुनी और अगले ही पल उसकी दुकान की सीढ़ियों पर चढ़ते हुये काऊंटर के पास जाकर उसका कॉलर पकड़ के चटाक से एक रेपटा दिया । ये मैने इतनी जल्दी किया के ना वो समझ सका ना मैं । मुझे पता था अब वो मुझे बहुत मारेगा इसलिये उसके कुछ समझने से पहले मैं भाग निकला । अब मैं डरा हुआ था मगर मन में चैन था तस्सली थी ।
आज मैं आज़ाद हुआ था । मैने सोच लिया था के इस बार मुझे मारा तो उसका सर खोल दूंगा । आज ज़िंदगी ने ज़बरजस्ती मुझे बाग़ी बना दिया था । डर तो था पर उसके साथ उस डर से लड़ने की हिम्मत थी । वो दिन बीत गया । अगले दिन घर से मुझे बाज़ार भेजा गया । पैर काँप रहे थे मगर मैने रास्ता नही बदला उसकी दुकान वाले रास्ते पर ही चलता रहा । उसकी दुकान के सामने आया तो देखा उसने मुझे देख कर मुँह फेर लिया । मैं नही जानता ऐसा क्यों हुआ किस वजह से हुआ । वो थप्पड़ शायद इतनी ज़ोर से लगा के उसके बड़प्पन का सारा ग़रूर चूर हो गया था । बस उसी पल से बात समझ आगयी के आप जितना दबेंगे लोग उतना आपको दबाते रहेंगे ।
आपको एक हद तक ही सहना पड़ता है । उसके बाद भी आप सहते हैं तो आपकी तकलीफों के ज़िम्मेदार आपको दबाने वाला नही बल्कि आप ख़ुद होंगे । ज़िंदगी ने आज ये सबक सिखा दिया था । उसके बाद ज़िंदगी बढ़ती रही स्कूल बीता कॉलेज बीता कई तरह के लोगों का सामना हुआ पर मुझ पर किसी ने हँसने या मुझे दबाने की हिम्मत नही की । क्यों की मैने उन्हे मौका ही नही दिया । मैं ये नही कह रहा के हिंसक होना सही है मैं ये कह रहा हूं के सहते रहना गलत है । बाकी तो आप खुद बेहतर जानते हैं...
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धीरज झा...
Keywords : Hindi Article, Happy Children's Day, Essay On Bullying, Children's Habits, Memories
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