"रे रमेसबा ! जा रे बाबू को स्कूल से ले आना ।" " लेकीन भैईया अभी त बारहीं बजा है ।बाबू का छुट्टी त तीन बजे ना होगा ।&quo...
"रे रमेसबा ! जा रे बाबू को स्कूल से ले आना ।"
" लेकीन भैईया अभी त बारहीं बजा है ।बाबू का छुट्टी त तीन बजे ना होगा ।"
" अरे ससुर आज बाल दिबस है ।परोगराम था उसके इस्कूल में ।जल्दी छुट्टी हो गया ।जल्दी जा आ के ढाबा संभालना हम घर से हो आयेंगे ।आ सुन आते हुये ना ऊ को कुछो मिठाई ऊठाई चाहे जो कहे खिला देना ।कहना पप्पा साम को कपड़ा दिला देंगे ।अब जा ।" रमेश चला जाता है इतना सुन कर ।उधर गंदा बर्तन का ढेर लगा है ।उसे देख ढाबा मालिक गुस्सा के शोर मचाता है ।
" रे बलूआ ! कहाँ मर गया रे ! " दस ग्यारह साल का बच्चा डरा हुआ , भागता हुआ आता है |
" कहाँ था रे ? ई बर्तन तोहर बाप धोयेगा ? ससुरा सब खाने को शेर है ।महिना पुरते तोहर महतारी भागल आयेगी पईसा के लिये और तू ऐश कर रहा है ।था कहाँ ई बता ? "
" चच्चा ऊ सामने लईका सब का जलूस जा रहा था ।बास दिबस का , ऊहे देख रहे थे |" बबलू डरते हुये बोला ।
" ससूरा बाल दिबस का जलूस देखेगा त काम तोहर बाप आ के करेगा ।जा कर बर्तन धो जल्दी से ।" एक थप्पड़ लगाते हुये ढाबा मालिक ने बबलू को भगा दिया ।
बबलू बाल दिवस मना रहा है रो रो कर बर्तन मांजता हुआ ।उसकी गलती थी उसने मार खाई ।उसे भला हक ही क्या है ये जलूस देखने का ।बबलू कोई बच्चा है क्या जो उसका बाल दिवस होगा ।गरीब मज़दूर के बच्चों का बच्चपन तब तक ही रहता है जब तक वो माँ की गोद से उतर कर चलना नही सीख लेते ।बहुत से बबलू हैं यहाँ ।अच्छा कमाते भी हैं पर वो बच्चे नही हैं उन्होंनें गरीबी के हाथों बच्चपन बेच दिया है ।दुनिया को देखने के बहुत नज़रिये हैं हर नज़रिये से हर चीज़ अलग सी दिखती है ।कभी ये नज़रिया अपना कर देखें घिन आयेगी समाज पर खुद पर ।गलती किसी एक की नही है सबकी ग़लतियों के कारण ही ये हाल है के वो बाल जो भविष्य हैं देश का वो इतनी सी उम्र में बच्चपन गंवा बैठे हैं ।हम में से कितने आज भी बच्चे ही हैं अपने अपने घरों में ।आज भी वही शरारतें माँ का वही प्यार दुलार ।पर ये जो हैं ये वक्त से बहुत पहले बड़े हो गये ।
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बहुत लापरवाह था मैं । क्या करना है क्या बनना है मैने कभी इस बारे में सोचा ही नही था । पर जब दुनिया को देखा तब पाया कि हमारे आस पास हमारे ही बीच एक ऐसी दुनिया है जो ज़िंदा तो है मगर बस नाम की । उस दुनिया के बच्चों ने बच्चपन नही जिया, समझ आते ही समझदारियों ने काम पर लगा दिया । बबलू जैसे बच्चों ने मेरी आँखों में एक सपना जगाया । मुझे नही पता वो सपना मैं पूरा कर पाऊँगा या नही मगर कोशिश ज़रूर करूँगा । मैं ना सही मेरी कोशिशों से मेरा सपना कोई और तो पूरा करेगा । मैने सपना देखा है एक ऐसे देश का जहाँ हमारी फालतू ज़रूरतों के त्याग से देश के हर उस बच्चे को बस अच्छा भोजन और शिक्षा मिल जाए जो बेसहारा हैं, जिनका शोषण किया जा रहा है, जिससे लोग अपना फायदा निकाल रहे हैं । मेरे सपने का कद इतना बड़ा है की शायद मेरी हकीकत के बिछौने पर समा न सके, क्योंकि मेरा बिछौना अभी बहुत छोटा है । मगर कोशिश भी ना की जाए ये तो गलत बात है । आज बाल दिवस है । मैने भी वो बच्चपन जिया है जब 5 सितम्बर को शिक्षकों के सम्मान के बदले 14 नवम्बर को वो हमें एक दिन ना पढ़ने की आज़ादी और लड्डू दिया करते थे । घर में कुछ पसंद का बन जाता था । मगर अब लगता है हमने हमसे ही बेईमानी की थी या कर रहे हैं क्योंकि एक बच्चपन ये भी है जिसे मैने एक छोटी सी कहानी और कुछ शब्दों मे पिरोया है । जो मुझे ऐसे ही कभी कभी मायूस कर देता है । ज़रा आप भी देखिए इस बच्चपन की झलक और मनाईए बाल दिवस ।
मैं वही बाल हूँ ।
मैं वो बाल हूँ जिसका दिवस तुम मना रहे हो
मैं वो भविष्य हूँ जिसका गुणगान तुम गा रहे हो
मगर समझो न हमको एक हम दो रूपों में जीते हैं
कुछ उठाते हैं बच्चपन के लुफ्त तो
कुछ मेरी तरह जीवन में घुले ज़हर के घूंट पीते हैं
बहुत लगता है अच्छा जब तुम एक को दुलारते हो
दबी सी चीख भी निकलती है जब बेवजह दूसरे को मारते हो
बहुत बड़ी है बात की हम पढ़ने भी जाएँ
यहाँ तो रोज़ की आफत है दो वक़्त का खाना कैसे जुटाएं
ना जाने खुद को खुशहाल देश बता कर किसको बहला रहे हो
हाँ हाँ मैं वही बाल हूँ जिसका दिवस तुम मन रहे हो
शहर के फुटपाथों, दुकानों, होटलों में तुम्हे दिख जाऊंगा मैं
दो वक़्त की रोटी तो दो कुकर्म के लिए भी बिक जाऊंगा मैं
कभी सहलाहट नहीं सर पर किसी हाथ की महसूस की है
मुस्कुराता तो हूँ हर दम लेकिन ज़िन्दगी मायूस सी है
भीख भी मांगता हूँ तो वो मालिक छीन लेता है
न मिले भीख तो कभी जुबान कभी बाज़ू काट देता है
तुम तो यूँ ही गर्व में फुले नहीं समां रहे हो
ज़रा गौर से देखो साहेब हम वही वाल हैं
जिसका दिवस तुम मन रहे हो
कभी आओ हमें देखो प्यार से मुस्कुरा ही दो
हम भी बच्चे हैं इस बात का ज़रा अहसास करा ही दो
बहुत लम्बी है कतार ज़रूरी मुद्दों की, मैं जानता हूँ
ज़्यादा कहाँ बस ज़रा सा ही वक्त मांगता हूँ
तुम आज के नौजवाँ हो तुम्हारी सुनी जाए शायद
तुम्हारी कोशिशों से क्या पता मुझ में से कोई अगले साल
बाल दिवस अच्छे से मनाए शायद
हकीकत मैं मुझ से क्यों घबरा रहे हो
मैं वही बाल हूँ जिसका दिवस तुम मना रहे हो ।
सभी बच्चों को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, खास तौर पर उन बच्चों के लिए दिल से प्रार्थना जिन्हें शायद बाल दिवस की जानकारी भी ना हो, उन सब को कोई ना कोई ऐसा हाथ मिले जो उन्हों भीख मांगने, ज़बरदस्ती काम करवाने, प्रताड़ित किए जाने वाले दलदलों से बहार खींच लाए. हम सब अपने स्तर से प्रयास करें तो इनके लिए कुछ बेहतर तो कर ही सकते हैं....ज़्यादा ना सही मगर थोड़ा थोड़ा ही सही.
.
धीरज झा...
Image Source - Macleans
" लेकीन भैईया अभी त बारहीं बजा है ।बाबू का छुट्टी त तीन बजे ना होगा ।"
" अरे ससुर आज बाल दिबस है ।परोगराम था उसके इस्कूल में ।जल्दी छुट्टी हो गया ।जल्दी जा आ के ढाबा संभालना हम घर से हो आयेंगे ।आ सुन आते हुये ना ऊ को कुछो मिठाई ऊठाई चाहे जो कहे खिला देना ।कहना पप्पा साम को कपड़ा दिला देंगे ।अब जा ।" रमेश चला जाता है इतना सुन कर ।उधर गंदा बर्तन का ढेर लगा है ।उसे देख ढाबा मालिक गुस्सा के शोर मचाता है ।
" रे बलूआ ! कहाँ मर गया रे ! " दस ग्यारह साल का बच्चा डरा हुआ , भागता हुआ आता है |
" कहाँ था रे ? ई बर्तन तोहर बाप धोयेगा ? ससुरा सब खाने को शेर है ।महिना पुरते तोहर महतारी भागल आयेगी पईसा के लिये और तू ऐश कर रहा है ।था कहाँ ई बता ? "
" चच्चा ऊ सामने लईका सब का जलूस जा रहा था ।बास दिबस का , ऊहे देख रहे थे |" बबलू डरते हुये बोला ।
" ससूरा बाल दिबस का जलूस देखेगा त काम तोहर बाप आ के करेगा ।जा कर बर्तन धो जल्दी से ।" एक थप्पड़ लगाते हुये ढाबा मालिक ने बबलू को भगा दिया ।
बबलू बाल दिवस मना रहा है रो रो कर बर्तन मांजता हुआ ।उसकी गलती थी उसने मार खाई ।उसे भला हक ही क्या है ये जलूस देखने का ।बबलू कोई बच्चा है क्या जो उसका बाल दिवस होगा ।गरीब मज़दूर के बच्चों का बच्चपन तब तक ही रहता है जब तक वो माँ की गोद से उतर कर चलना नही सीख लेते ।बहुत से बबलू हैं यहाँ ।अच्छा कमाते भी हैं पर वो बच्चे नही हैं उन्होंनें गरीबी के हाथों बच्चपन बेच दिया है ।दुनिया को देखने के बहुत नज़रिये हैं हर नज़रिये से हर चीज़ अलग सी दिखती है ।कभी ये नज़रिया अपना कर देखें घिन आयेगी समाज पर खुद पर ।गलती किसी एक की नही है सबकी ग़लतियों के कारण ही ये हाल है के वो बाल जो भविष्य हैं देश का वो इतनी सी उम्र में बच्चपन गंवा बैठे हैं ।हम में से कितने आज भी बच्चे ही हैं अपने अपने घरों में ।आज भी वही शरारतें माँ का वही प्यार दुलार ।पर ये जो हैं ये वक्त से बहुत पहले बड़े हो गये ।
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बहुत लापरवाह था मैं । क्या करना है क्या बनना है मैने कभी इस बारे में सोचा ही नही था । पर जब दुनिया को देखा तब पाया कि हमारे आस पास हमारे ही बीच एक ऐसी दुनिया है जो ज़िंदा तो है मगर बस नाम की । उस दुनिया के बच्चों ने बच्चपन नही जिया, समझ आते ही समझदारियों ने काम पर लगा दिया । बबलू जैसे बच्चों ने मेरी आँखों में एक सपना जगाया । मुझे नही पता वो सपना मैं पूरा कर पाऊँगा या नही मगर कोशिश ज़रूर करूँगा । मैं ना सही मेरी कोशिशों से मेरा सपना कोई और तो पूरा करेगा । मैने सपना देखा है एक ऐसे देश का जहाँ हमारी फालतू ज़रूरतों के त्याग से देश के हर उस बच्चे को बस अच्छा भोजन और शिक्षा मिल जाए जो बेसहारा हैं, जिनका शोषण किया जा रहा है, जिससे लोग अपना फायदा निकाल रहे हैं । मेरे सपने का कद इतना बड़ा है की शायद मेरी हकीकत के बिछौने पर समा न सके, क्योंकि मेरा बिछौना अभी बहुत छोटा है । मगर कोशिश भी ना की जाए ये तो गलत बात है । आज बाल दिवस है । मैने भी वो बच्चपन जिया है जब 5 सितम्बर को शिक्षकों के सम्मान के बदले 14 नवम्बर को वो हमें एक दिन ना पढ़ने की आज़ादी और लड्डू दिया करते थे । घर में कुछ पसंद का बन जाता था । मगर अब लगता है हमने हमसे ही बेईमानी की थी या कर रहे हैं क्योंकि एक बच्चपन ये भी है जिसे मैने एक छोटी सी कहानी और कुछ शब्दों मे पिरोया है । जो मुझे ऐसे ही कभी कभी मायूस कर देता है । ज़रा आप भी देखिए इस बच्चपन की झलक और मनाईए बाल दिवस ।
मैं वही बाल हूँ ।
मैं वो बाल हूँ जिसका दिवस तुम मना रहे हो
मैं वो भविष्य हूँ जिसका गुणगान तुम गा रहे हो
मगर समझो न हमको एक हम दो रूपों में जीते हैं
कुछ उठाते हैं बच्चपन के लुफ्त तो
कुछ मेरी तरह जीवन में घुले ज़हर के घूंट पीते हैं
बहुत लगता है अच्छा जब तुम एक को दुलारते हो
दबी सी चीख भी निकलती है जब बेवजह दूसरे को मारते हो
बहुत बड़ी है बात की हम पढ़ने भी जाएँ
यहाँ तो रोज़ की आफत है दो वक़्त का खाना कैसे जुटाएं
ना जाने खुद को खुशहाल देश बता कर किसको बहला रहे हो
हाँ हाँ मैं वही बाल हूँ जिसका दिवस तुम मन रहे हो
शहर के फुटपाथों, दुकानों, होटलों में तुम्हे दिख जाऊंगा मैं
दो वक़्त की रोटी तो दो कुकर्म के लिए भी बिक जाऊंगा मैं
कभी सहलाहट नहीं सर पर किसी हाथ की महसूस की है
मुस्कुराता तो हूँ हर दम लेकिन ज़िन्दगी मायूस सी है
भीख भी मांगता हूँ तो वो मालिक छीन लेता है
न मिले भीख तो कभी जुबान कभी बाज़ू काट देता है
तुम तो यूँ ही गर्व में फुले नहीं समां रहे हो
ज़रा गौर से देखो साहेब हम वही वाल हैं
जिसका दिवस तुम मन रहे हो
कभी आओ हमें देखो प्यार से मुस्कुरा ही दो
हम भी बच्चे हैं इस बात का ज़रा अहसास करा ही दो
बहुत लम्बी है कतार ज़रूरी मुद्दों की, मैं जानता हूँ
ज़्यादा कहाँ बस ज़रा सा ही वक्त मांगता हूँ
तुम आज के नौजवाँ हो तुम्हारी सुनी जाए शायद
तुम्हारी कोशिशों से क्या पता मुझ में से कोई अगले साल
बाल दिवस अच्छे से मनाए शायद
हकीकत मैं मुझ से क्यों घबरा रहे हो
मैं वही बाल हूँ जिसका दिवस तुम मना रहे हो ।
सभी बच्चों को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, खास तौर पर उन बच्चों के लिए दिल से प्रार्थना जिन्हें शायद बाल दिवस की जानकारी भी ना हो, उन सब को कोई ना कोई ऐसा हाथ मिले जो उन्हों भीख मांगने, ज़बरदस्ती काम करवाने, प्रताड़ित किए जाने वाले दलदलों से बहार खींच लाए. हम सब अपने स्तर से प्रयास करें तो इनके लिए कुछ बेहतर तो कर ही सकते हैं....ज़्यादा ना सही मगर थोड़ा थोड़ा ही सही.
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धीरज झा...
Image Source - Macleans
Keywords : Heart Touching Hindi Story, Stop Child Labour, My Dream, Happy Children's Day
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