(किश्तों वाली कहानी) ए क कहानी का अंत था और दूसरी की शुरुआत. बात खुश होने की थी या रो रो कर एक दूसरे के कंधे गिले कर देने की इसकी समझ द...
(किश्तों वाली कहानी)
एक कहानी का अंत था और दूसरी की शुरुआत. बात खुश होने की थी या रो रो कर एक दूसरे के कंधे गिले कर देने की इसकी समझ दोनों को नहीं आरही थी. दो रस्ते थे एक पर भागा जा सकता था, अपनी किस्मत से, अपनों से, अपनी जिम्मेदारियों से. दूसरा था सामना करना जिसमें हार निश्चित थी, उनकी नहीं, बल्कि उनकी जिन्हें जीत जाने का भ्रम था. दोनों ने सामना करने का फैसला किया. दोनों हार गए सबके लिए मगर दोनों ने जीत हासिल की. ये हार पहली ईंट थी उस सपने के नींव की जो उन्होंने मिलने के दिन से देखा था.
शहर से बाहर जहाँ शोर थम जाता था सन्नाटे की चीखों के तले, वहीँ ये दोनों अँधेरे के भय से भागते सूरज को स्याह रात में भी चमकने की हिम्मत करने वाले जुगनुओं की तरह हौंसला देते हुए लग रहे थे. गज्जब का साहस था दोनों में. लोग या तो डरते हैं या लड़ते हैं, ये ना लड़ रहे थे ना दर रहे थे, बस मोहब्बत ही मोहब्बत कर रहे थे.
उसका हाथ ज़ोर से दबाते हुए उसने थोड़े से सहमे हुए लफ़्ज़ों में पूछा “सपना पूरा होगा ना हमारा ?”
“ज़रूर होगा, नहीं होना होता तो कोई गलती कर बैठते. हमारे सपने को भले दुनिया ना देखे मगर हम देखेंगे.”
“कहीं तुम्हारी जुदाई ने जान ले ली मेरी तो ?”
“ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है, प्यार तो मैं भी तुमसे करता हूँ.”
“ऐसी बातें मत करो, तुम्हें बहुत आगे जाना है.”
“तुम्हारे साथ और हिम्मत के बिना मेरा आगे जाना नामुमकिन है.”
“हाँ बाबा मुझे कुछ नहीं होगा और तुम्हे कुछ होने नहीं देंगी मेरी दुआएं. अच्छा सच बताओ ना अगर कुछ ऐसा वैसा हो गया तो.”
“जीत तो हमारी पक्की है, सपना पूरा हो कर रहेगा. मैं ना रहा तो तुम उसे पूरा करोगी, भगवान ना करे कहीं तुम्हें मुझसे पहले कुछ हो गया तो मैं पूरा करूँगा, और अगर दोनों ना रहे तब तो हमारी जीत हो ही जाएगी. बस तुम साथ देना, तुम्हारे बिना हार जाएंगे.”
“आज के ही दिन हर साल तुम्हें तुमसे पहले यहाँ मिलूंगी तुम देख लेना.”
“मैं जनता हूँ.”
“ये किसी ने नहीं किया होगा ना” उसकी चमकती आँखों में एक उदासी तैर रही थी.
“कौन जाने, क्या पता हमसे पहले हमारे जैसे कितने पगलेट लोग रहे होंगे जिनके बारे में किसी ने कभी जाना ही नहीं होगा. वैसे भी लोगों को घर परिवार देश दुनिया आ पड़ोस सब जगहों की बहुत सी परेशानियों ने घेर रखा है तो इस बीच कोई प्यार मोहब्बत जैसी बेकार बात के लिए क्यों सोचे. हाँ बात प्यार के खिलाफ़ बोलने की हो तो सारा समाज मुंह खोल के खड़ा हो जाता है.”
“अरे अरे बस मेरे शेर, इतना ना गरजो, आज आखरी दिन है ज़रा प्यार से बात कर लो. जल जा गले की हम ना आएंगे बार बार.” उसे हर बात गाने के सही बोल याद होते थे मगर वो हर बार गलत गाती थी क्योंकि उसे अच्छा लगता था कि वो उसके गलत बोल पर हँसे और फिर उन्हें सही करे.
“आदत से बाज़ नहीं आओगी ना, फिर से गलत बोल.” उसने बोल सही किए और गाना गुनगुनाने लगा. और वो बस बिना पलक झपकाए उसे देखती रही.
“कितनी बार कहा है ऐसे ना देखा करो लड़का मैं हूँ फिर भी मुझे ही शर्मना पड़ता है.”
“देख लेने दो फिर इतने करीब से ना जाने कब....”
“कब क्या आगले साल और फिर उसके अगले फिर हर साल. मुझे तुम्हारे इरादे नेक नहीं लग रहे, तुमने वादा.........”
उसके आगे के बोल दुनिया की सबसे मखमली चीज़ से भी ज़्यादा कोमल होंठों के निचे दब गए. अब बस चार ऑंखें मुस्कुरा रही थीं. जिनमें ना जुदाई का गम था ना आगे होने वाली परेशानियों कि कोई फ़िक्र और ना उन अपनों के लिए कोई नफ़रत जिन्होंने उन्हें मौत से भी बुरी सज़ा सुना दी थी......
कहानी आगे बढ़ती रहेगी, कहाँ तक जाएगी मुझे भी इसका कोई अनुमान नहीं बस लिखता रहूँगा, जब मन उदास होगा, जब किसी का ख्याल मेरी सांसों से भी पास होगा, जब कभी बेचैनी छा जाया करेगी जब उन दोनों की याद आ जाया करेगी, तब तब लिखूंगा. साथ बने रहिए, यकीन है कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ेगी आपको पसंद आने लगेगी.
धीरज झा
एक कहानी का अंत था और दूसरी की शुरुआत. बात खुश होने की थी या रो रो कर एक दूसरे के कंधे गिले कर देने की इसकी समझ दोनों को नहीं आरही थी. दो रस्ते थे एक पर भागा जा सकता था, अपनी किस्मत से, अपनों से, अपनी जिम्मेदारियों से. दूसरा था सामना करना जिसमें हार निश्चित थी, उनकी नहीं, बल्कि उनकी जिन्हें जीत जाने का भ्रम था. दोनों ने सामना करने का फैसला किया. दोनों हार गए सबके लिए मगर दोनों ने जीत हासिल की. ये हार पहली ईंट थी उस सपने के नींव की जो उन्होंने मिलने के दिन से देखा था.
शहर से बाहर जहाँ शोर थम जाता था सन्नाटे की चीखों के तले, वहीँ ये दोनों अँधेरे के भय से भागते सूरज को स्याह रात में भी चमकने की हिम्मत करने वाले जुगनुओं की तरह हौंसला देते हुए लग रहे थे. गज्जब का साहस था दोनों में. लोग या तो डरते हैं या लड़ते हैं, ये ना लड़ रहे थे ना दर रहे थे, बस मोहब्बत ही मोहब्बत कर रहे थे.
उसका हाथ ज़ोर से दबाते हुए उसने थोड़े से सहमे हुए लफ़्ज़ों में पूछा “सपना पूरा होगा ना हमारा ?”
“ज़रूर होगा, नहीं होना होता तो कोई गलती कर बैठते. हमारे सपने को भले दुनिया ना देखे मगर हम देखेंगे.”
“कहीं तुम्हारी जुदाई ने जान ले ली मेरी तो ?”
“ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है, प्यार तो मैं भी तुमसे करता हूँ.”
“ऐसी बातें मत करो, तुम्हें बहुत आगे जाना है.”
“तुम्हारे साथ और हिम्मत के बिना मेरा आगे जाना नामुमकिन है.”
“हाँ बाबा मुझे कुछ नहीं होगा और तुम्हे कुछ होने नहीं देंगी मेरी दुआएं. अच्छा सच बताओ ना अगर कुछ ऐसा वैसा हो गया तो.”
“जीत तो हमारी पक्की है, सपना पूरा हो कर रहेगा. मैं ना रहा तो तुम उसे पूरा करोगी, भगवान ना करे कहीं तुम्हें मुझसे पहले कुछ हो गया तो मैं पूरा करूँगा, और अगर दोनों ना रहे तब तो हमारी जीत हो ही जाएगी. बस तुम साथ देना, तुम्हारे बिना हार जाएंगे.”
“आज के ही दिन हर साल तुम्हें तुमसे पहले यहाँ मिलूंगी तुम देख लेना.”
“मैं जनता हूँ.”
“ये किसी ने नहीं किया होगा ना” उसकी चमकती आँखों में एक उदासी तैर रही थी.
“कौन जाने, क्या पता हमसे पहले हमारे जैसे कितने पगलेट लोग रहे होंगे जिनके बारे में किसी ने कभी जाना ही नहीं होगा. वैसे भी लोगों को घर परिवार देश दुनिया आ पड़ोस सब जगहों की बहुत सी परेशानियों ने घेर रखा है तो इस बीच कोई प्यार मोहब्बत जैसी बेकार बात के लिए क्यों सोचे. हाँ बात प्यार के खिलाफ़ बोलने की हो तो सारा समाज मुंह खोल के खड़ा हो जाता है.”
“अरे अरे बस मेरे शेर, इतना ना गरजो, आज आखरी दिन है ज़रा प्यार से बात कर लो. जल जा गले की हम ना आएंगे बार बार.” उसे हर बात गाने के सही बोल याद होते थे मगर वो हर बार गलत गाती थी क्योंकि उसे अच्छा लगता था कि वो उसके गलत बोल पर हँसे और फिर उन्हें सही करे.
“आदत से बाज़ नहीं आओगी ना, फिर से गलत बोल.” उसने बोल सही किए और गाना गुनगुनाने लगा. और वो बस बिना पलक झपकाए उसे देखती रही.
“कितनी बार कहा है ऐसे ना देखा करो लड़का मैं हूँ फिर भी मुझे ही शर्मना पड़ता है.”
“देख लेने दो फिर इतने करीब से ना जाने कब....”
“कब क्या आगले साल और फिर उसके अगले फिर हर साल. मुझे तुम्हारे इरादे नेक नहीं लग रहे, तुमने वादा.........”
उसके आगे के बोल दुनिया की सबसे मखमली चीज़ से भी ज़्यादा कोमल होंठों के निचे दब गए. अब बस चार ऑंखें मुस्कुरा रही थीं. जिनमें ना जुदाई का गम था ना आगे होने वाली परेशानियों कि कोई फ़िक्र और ना उन अपनों के लिए कोई नफ़रत जिन्होंने उन्हें मौत से भी बुरी सज़ा सुना दी थी......
कहानी आगे बढ़ती रहेगी, कहाँ तक जाएगी मुझे भी इसका कोई अनुमान नहीं बस लिखता रहूँगा, जब मन उदास होगा, जब किसी का ख्याल मेरी सांसों से भी पास होगा, जब कभी बेचैनी छा जाया करेगी जब उन दोनों की याद आ जाया करेगी, तब तब लिखूंगा. साथ बने रहिए, यकीन है कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ेगी आपको पसंद आने लगेगी.
धीरज झा
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