इं सान खुद को भले ही कितना भी मजबूत क्यों ना कर ले मगर जब जिंदगी के सफ़र में कोई अपना पीछे छुटता है तो मायूसी कहीं ना कहीं तो झलक ही आती ह...

वहां जो लड़का खुद को मजबूत दिखने कि कोशिश कर रहा था वो दिवाकर था और वो जो लड़की सहमी हुई सी थी वो सुनैना थी. इनके बारे में हम कहानी के आगे बढ़ने के साथ साथ जान लेंगे, अभी बस ये जान लेना ज़्यादा ज़रूरी है कि 5 दिनों में सुनैना की सगाई है मगर दिवाकर से नहीं बल्कि उससे जिसे सुनैना के पिता जी ने पसंद किया है. दोनों चाहते तो भाग सकते थे मगर दोनों ने अपने अपने परिवार की ख़ुशी को बनाए रखने के लिए ये फैसला किया कि वो एक दूसरे से शादी का ख्याल मन से निकाल देंगे मगर ये जो मोहब्बत का पौधा पांच साल पहले अपने अपने दिलों में रोपा था इन्होने ये ऐसे ही बढ़ेगा और एक दिन विशाल दरख़्त बनेगा. इस मोहब्बत के पौधे को खाद पानी मिलता रहे और ये हरा भरा रहे इसी लिए इन्होने तय किया कि ये हर साल आज के ही दिन जब ये अलग हुए उसी दिन किसी भी हाल में ज़रूर मिलेंगे. अब ये वादा कैसे पूरा करेंगे दोनों और ये मोहब्बत का पौधा विशाल पेड़ बन पायेगा या नहीं ये तो नियति ही जाने.
दिवाकर अपने फ्लैट पर आते ही निढाल हो कर बिस्तर पर औंधे मुंह जा गिरता है. 100 रुपए की लौटरी हार कर इंसान इतना मायूस हो जाता है तो सोचो जो अपनी सांसें हार कर आया हो उसका क्या हाल हो रहा होगा. जैसे हर संबंध और रिश्ते में प्रेम का रूप सामान होता है वैसे ही विरह भी एक ही सामान होती है. मईया यशोदा ने जितना दुःख नन्हें कन्हैया के माता देवकी के पास वापस लौट जाने पर जिस पीड़ा को झेला होगा आज दिवाकर भी उसी पीड़ा को सह रहा था. और उधर नन्हें कन्हैया जैसा हाल था सुनैना का जिसे नियति को ठुकराना भी मंज़ूर नहीं था और दिवाकर से दूर जाना भी मंजूर नहीं था.
कहते हैं एक सच्चा दोस्त थोडा थोडा हर रिश्ते का असर अपने अन्दर रखता है, कई बार वो दुश्मन भी है, तो कई बार वो प्रेमी भी, कई बार उसमें पिता सी कठोरता भी दिखती है तो कई बार माँ सा दुलार और समझ भी. आपकी ज़िन्दगी में अगर कोई सच्चा दोस्त है तो समझिए खुश मत होइए क्योंकि आपकी परेशानियाँ वहीँ की वहीँ रहेंगी. इसका कारण ये है कि आपके हिस्से की परेशानियाँ आपकी ही हैं वो बस उन्हीं परेशानियों को कम करेगा जिन्हें उसने बढ़ाया है. लेकिन जो भी हो अगर आपके पास सच्चा दोस्त है तो आप खुशकिस्मत और आपकी आधी ज़िन्दगी रोमांच से भरी होगी क्यों कि आधी से ज़्यादा आप उसके साथ चाह कर भी नहीं बिता सकते. दिवाकर भी खुशकिस्मत था क्योंकि उसके पास हरी है, हरी ही वो है जो दिवाकर की आधी परेशानियों की वजह भी है और उसे सँभालने और समझने वाला इकलौता शख्स भी.
क्रमशः
धीरज झा
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