आ ज इस ख़ुशी के दिन भी दद्दा का मन व्याकुल था. सबके सामने वो व्याकुल नहीं दिखना चाहते थे, पहले ही मिडिया में और जनता उनको अपना निशाना बनान...
आज इस ख़ुशी के दिन भी दद्दा का मन व्याकुल था. सबके सामने वो व्याकुल नहीं दिखना चाहते थे, पहले ही मिडिया में और जनता उनको अपना निशाना बनाने के लिए तैयार बैठी रहती है. लेकिन व्याकुलता ही है कहीं तो निकलेगी इसी लिए उन्होंने वो कोने वाला कमरा चुना जहाँ वो हमेशा अपने दुर्भाग्य पर रोते रहे. जब वो इस कमरे में होते तब यहाँ कोई ना आता. घर के माहौल में उनके आंसुओं की नमी का बोलबाला होता. कमरा साउंडप्रूफ है इसी लिए आवाज़ भी बहार नहीं जाती.
दद्दा अपनी उन सफलताओं को याद कर के रो रहे थे जो हाथ तो आयीं मगर मुंह को लगने से पहले ही छीन ली गयीं. आज उनको अपनी कर्मनिष्ठ और ईमानदारी पर इतना क्रोध आरहा था कि मन हो रहा था एक एक गन्दी गाली दोनों को दे दें परन्तु वो ये सोच कर रुक गए कि चलो त्याग ही है कभी तो सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा. दद्दा इन्हीं बातों के चिंतन में दुबे थे कि उनके पजामे के नीचे वाले चोर जेब से एक आवाज़ आई “हेप्पी बड्डे दद्दा”
दद्दा झुंझला गए और बोले “ससुर तुम्हें कितनी बार कहा है ऐसे आचनक से कहीं भी टुभुक ना दिया करो. कौन जाने हमारे पास कौन खड़ा हो, वैसे भी पार्टी हमसे किनारा करने के बहाने धुन्धती रहती है. क्या पता अपनी प्रभुता साबित करने के लिए मुझ बूढ़े की ईमानदारी की बलि चढ़ा दी जाए.”
“इतना ही डर है तो कहे हमको ऐसे साथ लिए घूमते हो, जला कहे नहीं देते वैसे ही जैसे सबने जला दिया, या हमारी बत्ती बना कर विकास को कहे नहीं दे देते, कम से कम ससुर कान खुजलाने के काम तो आएंगे.” पजामे की चोर जेब में जो भी था उसका दर्द पुराने बवासीर के दर्द की भांति तीखा वचन देखते ही एकदम से फूट पड़ा.
“अरे हजरिए, तुम तो नाराज हो गए रे. अच्छा छमा मांगते हैं. तुमको तो पता ही है पार्टी द्वारा हमेशा किया गया ये भेदभाव हमको कैसे कचोटता है. बाक़ी तुम्हारा हाल कौन सा हमसे अलग है यार. तुमको देखते हैं तो हौंसला होता है कि चलो हम अकेले नहीं जो झांसे में लाने के लिए बलि चढ़ा दिए गए. लेकिन एक बात है हजरिए चुटिया तुम्हारा जब्बर काटा गया.” इतना कह कर दद्दा लोट लोट कर हंसने लगे.
“ई लेयो, कौन बोला तो ई बोला जिसका चुटिया क्या पूरा का पूरा खेती ही काट लिया गया. हेडमास्टर बनायेंगे कह कह कर साला चपरासी बना दिया गया आपको तब पर भी खींसे निपोर रहे. कुछो कहो दद्दा लेकिन एक बात माननी पड़ेगी तुम्हारी किस्मत ससुर एक दम मनहूस है.” इस बार लोट पोट होने की बारी हजरिए की थी.
परदे के पीछे से सन सत्तावन का विरह से भरा संगीत बज उठा, दद्दा की ऑंखें समुद्र और उनमे आंसू समुद्र की उफान मरती लहरें बन गयीं. पीड़ा से भरे शब्दों के साथ उन्होंने बोलना शुरू किया “सच कह रहे हो हजरिए, कलयुग में अगर कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का फल मीठा होता तो भला कलयुग के का नाम कलयुग होता ही क्यों. हमारी किस्मत का कोई कसूर नहीं जो कसूर है वो आज के समाज का आज के बदलते वक्त का. हम तो ससुर भीष्म भी ना हो पाए हजरिए, हम भी कल्जुगिये थे, लालच और अत्मुग्धा हम में भी रही. लेकिन हम कभी अपनी पार्टी का अहित नहीं सोचे, कभी उसका साथ नहीं छोड़े. मगर हमको क्या पता था कि इसका फल हमको उस लंबे इंतज़ार के रूप में मिलेगा जो कभी ख़तम ही नहीं होगा.” हजरिए को इतनी गहरी पीड़ा को महसूस करते हुए रो देना चाहिए ता मगर वो नालायक उल्टा हंसने लगा.
“क्या दद्दा, भाषण तुम्हारे राग राग में समां गया है, जीवन की डोर सरकते सरकते आखरी सिरे तक आगयी लेकिन तुम अपना बकैती नहीं भूले. याद रखना दद्दा तुम अगर राजनीति के पुराने खिलाड़ी हो तो हम ससुर आधुनिक राजनीति के सूत्रधार रहे हैं, भाषण और नौटंकी में हमसे ना जीत पाओगे. अरे तुम जो किए अपने आपको बड़ा साबित करने को किए हाँ बस गलत ये हुआ कि साबित तो कर लिया बड़ा मगर वो बड़ा नहीं जिसके हाथ घर की कमान होती होती बल्कि वो बड़ा जो अच्छे दिन आने से पहले ही दिवार पर तंग जाता है और घर वाले साल में एक बार जबरदस्ती उसके आगे हाथ जोड़ दिया करते हैं.” हजरिए के वचन थोड़े ज़्यादा ही कठोर हो गये थे.
दद्दा की आँखों में खून उतर आया और उन्होंने चोर जेब से हजरिए को बहार निकलते हुए गुस्से से भरे शब्दों में कहा “हजरिए, जुबान को लगाम दे, वर्ना आज तेरी जीवनलीला समाप्त कर दूंगा.”
हजारिया भी अपनी पीड़ा को ज़्यादा देर समेत ना पाया और अंत में अपने द्रवित शब्दों के साथ बोल ही पड़ा “दद्दा तुम्हारा जन्मदिन हमको याद है लेकिन शायद तुम ये भूल गए कि आज हमारा मरनदिन भी है. हम तो साल पहले ही मार दिए गए, जो हम हैं वो तो बस हमारा अवशेष है जिसको अब शायद गंगा माई भी छपे के दर से पनाह ना दे. तुमको अपनी क़ुरबानी याद है और हमारी कुर्बानी का क्या ? हम तो भगत सिंह हो गए कि बिना सूचना दिए ही शहीद कर दिया गया. एक ही रात में हम छूत की बीमारी बन गए थे, जिसके पास जाओ वो नकार देता था हमको पनाह देने से. कभी हमको चूम चूम कर तिजोरी में रखा जाता था और फिर एक दिन में ही सब खत्म. आदमी ना हुआ विधाता होगया, कुछ देर के भाषण में ही हमारी पूरी प्रजाति को विलुप्त कर देने का फरमान सुना दिया गया. मैं अपने छोटे भाई पंसहिया को भी ना बचा सका. अब हमको जीने का कोई इच्छा भी नहीं मार दो हमको, जला दो, दद्दा जला दो.”
हजरिए की दुःख भरी कहानी सुन कर दद्दा को अहसास होने लगा कि हजरिए का दुःख सच में बड़ा है, हम कम से कम जिंदा तो हैं, जैसे भी हो एक इज्जत तो है मगर ये बिचारा तो बिना कारण ही अपनी प्रतिष्ठा और मूल्य दोनों गंवा कर बेसहारा और गुनेहगार दोनों बन गया. दद्दा ने हजरिए को साइन से लगाते हुए कहा “मत रो मेरे साथी, तेरा और मेरा दुःख बंटा थोड़े ना है. एक तू ही तो है जो मुझे समझता है. चल साडी बातें भूल कर आज अपना जन्मदिन मानते हुए तेरी और तेरे भाई बंधुओं की आत्मशांति हेतु प्रार्थना करते हैं.” दद्दा और हजारिया एक दूसरे को सहारा दे रहे थे और ये कोपभवन दोनों के बलिदान और त्याग के बदले मिले इन आंसुओं का साक्षी बन रहा था.
हमारी तरफ से दद्दा को जन्मदिन की शुभकामनाएं और हजरिए और उसके भाइयों को भावपूर्ण श्रद्धांजली
धीरज झा
दद्दा अपनी उन सफलताओं को याद कर के रो रहे थे जो हाथ तो आयीं मगर मुंह को लगने से पहले ही छीन ली गयीं. आज उनको अपनी कर्मनिष्ठ और ईमानदारी पर इतना क्रोध आरहा था कि मन हो रहा था एक एक गन्दी गाली दोनों को दे दें परन्तु वो ये सोच कर रुक गए कि चलो त्याग ही है कभी तो सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा. दद्दा इन्हीं बातों के चिंतन में दुबे थे कि उनके पजामे के नीचे वाले चोर जेब से एक आवाज़ आई “हेप्पी बड्डे दद्दा”
दद्दा झुंझला गए और बोले “ससुर तुम्हें कितनी बार कहा है ऐसे आचनक से कहीं भी टुभुक ना दिया करो. कौन जाने हमारे पास कौन खड़ा हो, वैसे भी पार्टी हमसे किनारा करने के बहाने धुन्धती रहती है. क्या पता अपनी प्रभुता साबित करने के लिए मुझ बूढ़े की ईमानदारी की बलि चढ़ा दी जाए.”
“इतना ही डर है तो कहे हमको ऐसे साथ लिए घूमते हो, जला कहे नहीं देते वैसे ही जैसे सबने जला दिया, या हमारी बत्ती बना कर विकास को कहे नहीं दे देते, कम से कम ससुर कान खुजलाने के काम तो आएंगे.” पजामे की चोर जेब में जो भी था उसका दर्द पुराने बवासीर के दर्द की भांति तीखा वचन देखते ही एकदम से फूट पड़ा.
“अरे हजरिए, तुम तो नाराज हो गए रे. अच्छा छमा मांगते हैं. तुमको तो पता ही है पार्टी द्वारा हमेशा किया गया ये भेदभाव हमको कैसे कचोटता है. बाक़ी तुम्हारा हाल कौन सा हमसे अलग है यार. तुमको देखते हैं तो हौंसला होता है कि चलो हम अकेले नहीं जो झांसे में लाने के लिए बलि चढ़ा दिए गए. लेकिन एक बात है हजरिए चुटिया तुम्हारा जब्बर काटा गया.” इतना कह कर दद्दा लोट लोट कर हंसने लगे.
“ई लेयो, कौन बोला तो ई बोला जिसका चुटिया क्या पूरा का पूरा खेती ही काट लिया गया. हेडमास्टर बनायेंगे कह कह कर साला चपरासी बना दिया गया आपको तब पर भी खींसे निपोर रहे. कुछो कहो दद्दा लेकिन एक बात माननी पड़ेगी तुम्हारी किस्मत ससुर एक दम मनहूस है.” इस बार लोट पोट होने की बारी हजरिए की थी.
परदे के पीछे से सन सत्तावन का विरह से भरा संगीत बज उठा, दद्दा की ऑंखें समुद्र और उनमे आंसू समुद्र की उफान मरती लहरें बन गयीं. पीड़ा से भरे शब्दों के साथ उन्होंने बोलना शुरू किया “सच कह रहे हो हजरिए, कलयुग में अगर कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी का फल मीठा होता तो भला कलयुग के का नाम कलयुग होता ही क्यों. हमारी किस्मत का कोई कसूर नहीं जो कसूर है वो आज के समाज का आज के बदलते वक्त का. हम तो ससुर भीष्म भी ना हो पाए हजरिए, हम भी कल्जुगिये थे, लालच और अत्मुग्धा हम में भी रही. लेकिन हम कभी अपनी पार्टी का अहित नहीं सोचे, कभी उसका साथ नहीं छोड़े. मगर हमको क्या पता था कि इसका फल हमको उस लंबे इंतज़ार के रूप में मिलेगा जो कभी ख़तम ही नहीं होगा.” हजरिए को इतनी गहरी पीड़ा को महसूस करते हुए रो देना चाहिए ता मगर वो नालायक उल्टा हंसने लगा.
“क्या दद्दा, भाषण तुम्हारे राग राग में समां गया है, जीवन की डोर सरकते सरकते आखरी सिरे तक आगयी लेकिन तुम अपना बकैती नहीं भूले. याद रखना दद्दा तुम अगर राजनीति के पुराने खिलाड़ी हो तो हम ससुर आधुनिक राजनीति के सूत्रधार रहे हैं, भाषण और नौटंकी में हमसे ना जीत पाओगे. अरे तुम जो किए अपने आपको बड़ा साबित करने को किए हाँ बस गलत ये हुआ कि साबित तो कर लिया बड़ा मगर वो बड़ा नहीं जिसके हाथ घर की कमान होती होती बल्कि वो बड़ा जो अच्छे दिन आने से पहले ही दिवार पर तंग जाता है और घर वाले साल में एक बार जबरदस्ती उसके आगे हाथ जोड़ दिया करते हैं.” हजरिए के वचन थोड़े ज़्यादा ही कठोर हो गये थे.
दद्दा की आँखों में खून उतर आया और उन्होंने चोर जेब से हजरिए को बहार निकलते हुए गुस्से से भरे शब्दों में कहा “हजरिए, जुबान को लगाम दे, वर्ना आज तेरी जीवनलीला समाप्त कर दूंगा.”
हजारिया भी अपनी पीड़ा को ज़्यादा देर समेत ना पाया और अंत में अपने द्रवित शब्दों के साथ बोल ही पड़ा “दद्दा तुम्हारा जन्मदिन हमको याद है लेकिन शायद तुम ये भूल गए कि आज हमारा मरनदिन भी है. हम तो साल पहले ही मार दिए गए, जो हम हैं वो तो बस हमारा अवशेष है जिसको अब शायद गंगा माई भी छपे के दर से पनाह ना दे. तुमको अपनी क़ुरबानी याद है और हमारी कुर्बानी का क्या ? हम तो भगत सिंह हो गए कि बिना सूचना दिए ही शहीद कर दिया गया. एक ही रात में हम छूत की बीमारी बन गए थे, जिसके पास जाओ वो नकार देता था हमको पनाह देने से. कभी हमको चूम चूम कर तिजोरी में रखा जाता था और फिर एक दिन में ही सब खत्म. आदमी ना हुआ विधाता होगया, कुछ देर के भाषण में ही हमारी पूरी प्रजाति को विलुप्त कर देने का फरमान सुना दिया गया. मैं अपने छोटे भाई पंसहिया को भी ना बचा सका. अब हमको जीने का कोई इच्छा भी नहीं मार दो हमको, जला दो, दद्दा जला दो.”
हजरिए की दुःख भरी कहानी सुन कर दद्दा को अहसास होने लगा कि हजरिए का दुःख सच में बड़ा है, हम कम से कम जिंदा तो हैं, जैसे भी हो एक इज्जत तो है मगर ये बिचारा तो बिना कारण ही अपनी प्रतिष्ठा और मूल्य दोनों गंवा कर बेसहारा और गुनेहगार दोनों बन गया. दद्दा ने हजरिए को साइन से लगाते हुए कहा “मत रो मेरे साथी, तेरा और मेरा दुःख बंटा थोड़े ना है. एक तू ही तो है जो मुझे समझता है. चल साडी बातें भूल कर आज अपना जन्मदिन मानते हुए तेरी और तेरे भाई बंधुओं की आत्मशांति हेतु प्रार्थना करते हैं.” दद्दा और हजारिया एक दूसरे को सहारा दे रहे थे और ये कोपभवन दोनों के बलिदान और त्याग के बदले मिले इन आंसुओं का साक्षी बन रहा था.
हमारी तरफ से दद्दा को जन्मदिन की शुभकामनाएं और हजरिए और उसके भाइयों को भावपूर्ण श्रद्धांजली
धीरज झा
Image Source :- Time
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