“ऐ साधो जी, इहें बईठे रहिएगा का. चलिए गर्ल कॉलेज का एक ठो राउंड मार आया जाए. आपकी भाभी की प्यारी प्यारी अखियाँ थकावट के मार से कुहंर रह...
“ऐ साधो जी, इहें बईठे रहिएगा का. चलिए गर्ल कॉलेज का एक ठो राउंड मार आया जाए. आपकी भाभी की प्यारी प्यारी अखियाँ थकावट के मार से कुहंर रही होंगी, वो भी सोच रही होंगी कि आखिर आज बलमा जी किधर रह गए.”
“का लक्की भईया कितना फेंकते हैं आपहुं. करिसमा आपको देखती भी नहीं और आप हैं कि ख्याली पुलाव पकाते रहते हैं.” साधो जी ने अनजाने में लक्की भईया की खिल्ली उदा दी.
लेकिन इधर भी लक्की भईया थे, जूनियर के सामने कैसे झुक जाते भला. भोजपुरिया हीरो के स्टाईल में अपनी आँखों से मेला वाला चश्मा उतारते हुए लक्की भईया भारी आवाज़ में बोले “देखो साधो, लटकन हो तो लटकन ही बने रहो फुनगी पर चढ़ने से हाथ पैर कचक जाने का सम्भावना ज्यादा बढ़ जाता है. और ये बताओ ऊ तुम्हारी बुआ की बेटी है जो करिसमा कह के बुला रहे, हाँ ? हम सीनियर हैं तो इस हिसाब से उसको भाभी कहो. आ दूसरी बात हम ऊ देखते हैं जो तुम जैसे लपड़झन्ने को नहीं दिखता. जब हमारा पीठ होता है ना उसकी तरफ तब वो हमको निहार रही होती है. और जब हम उसकी तरफ देखते हैं तो लाज के मारे वो मुंह फेर लेती है.” लक्की भईया ने जितना फेंकना था फेंक दिया. इधर साधो ने भी एक सच्चे जूनियर की तरह उनकी फटकार को उनका आशीर्वाद और स्नेह समझ कर दांत चियार दिए.
“अरे लक्की भईया आप तो छोटे भाई की बात का बुरा मान गए. अच्छा चलिए आज भाभी आपको सामने से
देख कर भी मुस्किया दें यही प्राथना करते हैं हम महादेव से.” अब लक्की भईया भी शांत हो गए थे. साधो को अपने लाल बुलेट के पीछे बिठा कर चल दिए हवा से बतियाने.
आज शाम का मजलिस जादो जी के रूम पर जमा हुआ था. जादो जी अपने परिवार से पाहिले पाहिले ग्रेजुएट बनने जा रहे थे वो भी हिंदी साहित्य के विषय से. उनके रूम पर चाहे जो मन सो करो बस शर्त यही होती थी कि उनकी 10 15 कवितायेँ सुनने के बाद जम कर बड़ाई पेलना होता था. हालाँकि यह नियम लक्की भईया पर नहीं था लेकिन फिर भी लक्की भईया उसका मन खुश करने के लिए 3 पेग के बाद खुदे कह देते थे “अरे ओ कवि जी एक ठो दर्द भरा सायरी सुना दीजिए.” कवि जी के संबोधन से जादो जी को ऐसे लगता जैसे प्रभु हरी स्वयं पधारे हैं उनकी कुटिया में और सप्रेम उन्हें पुकार रहे हैं. जादो जी इस तरह से आनंद के सागर में डूब जाते कि उन्हें अपनी कविताओं को लक्की भईया द्वारा शायरी कहे जाने पर भी बुरा ना लगता. बाक़ी किसके गुदा में इतना दम नहीं था कि जादो जी की कविता को शायरी कह जाए.
शराब का दौर खतम हो चुका था अब दौर था बतकही का लेकिन इधर साधो लक्की के बगल में अपने स्वभाव के विपरीत चुप चाप बैठा हुआ था. लक्की भईया को अभी इतना होश था कि अपने यार साधो का उदासी भांप सकें. गहरी सोच में डूबे साधो को हिलाते हुए लक्की भईया ने कहा “अरे यार इसीलिए कहते हैं एक आधा लगा लिया करो, एक आधे से कहीं नहीं तुम्हारा कंठी टूटेगा. वैसे आज ये मुखमंडल पर मायूसी काहे पसरा हुआ है.”
साधो जैसे इसी की प्रतीक्षा कर रहा था कि कब लक्की भईया उससे उसकी उदासी की वजह पूछें और वो झट से वो कह दे जो वो किसी हाल में कहना नहीं चाहता था. और हुआ भी वैसा ही, लक्की भईया की बात ख़तम होते ही साधो बोल पड़ा “भईया कल से हमको लेने नहीं आइएगा घर. हम खुदे आपको कॉलेज मिल लेंगे. और माफ़ी चाहेंगे कल से आपके साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर घूम भी नहीं पाएंगे”
“काहे साधो जी, चुत्तर में घाव हो गया है का.” जादो जी ने साधो की चुटकी ली और उसी के साथ कमरे में कितने ही ठहाके गूंज उठे.
“चोप भोंसड़ी वालों, लाफ्टर सो चल रहा है कोई, या नौटंकी में मौसी नाच रही तुम सबकी जो इतना पिहकारी पाड़ रहे हो. देख नहीं रहे साधो जी उदास हैं और तुम सबको मजाक सूझ रहा है. चलिए जाइए सब एक एक पान खा कर आइये और सुनिए एक मीठा पत्ता तुलसी 300 हमारे लिए भी लेते आइएगा. हाँ हिरा मोती ऊपर से डलवा लीजिएगा. जादो जी ये लीजिये पईसा.” लक्की भईया पिए हों या नहीं, उनका यही स्टाईल रहता है. एक पल में गुस्सा असमान पर अगले ही पल मीठी बोली जुबान पर.
“नहीं भईया हम ले आते हैं, आप साधो जी को देखिए.” इतना कह कर जादो जी बाक़ी लम्पटों के साथ बहार चले गए.
“जानते हैं साधो जी, हम ससुर दुनिया को कभी अपना झांट बराबर नहीं समझे. हम अपने आप में ही राजा हैं. बहुत ज्यादा उदंड रहे हैं हम शुरू से, उसका कारण भी था कि पिता जी को बिजनस से फुर्सत नहीं था और अम्मा हमारी हमसे मुंह मोड़ कर कबका भगवान यहाँ चली गयीं. इसीलिए जो मन में आया वही किए. हमेशा चाहते रहे कि कोई अपना हो जो साला थोड़ा रौब से पूछे कि ऐसा काहे कर रहा है ? लेकिन कौनो नहीं पूछा साधो जी. जब आपको पहला बार कॉलेज में देखे तो लगा जैसे कि हमारा छोटा भाई मिल गया है जो कभी हमसे बिछड़ गया था. आप हमको कोई भी गलत काम करने से टोकते थे, जब भी हम शराब पीते हैं तो आप हमारे साथ बैठते हैं सिर्फ इस लिए क्योंकि आपको पता है हम पी कर बेसम्हार हो जाते हैं. जब मन होता है आपको डांट लेते हैं जब मन होता है तब दुलार लेते हैं. हमेशा आपको कहे हैं कि एक पेग पी लीजिए मगर दिल से हमेशा चाहे हैं कि आप कभी शराब के आस पास भी ना फटकें. अगर आप कभी गलती से पी भी लेते तो कसम से हम कंटाप जड़ देते. इतना प्यार करते हैं आपको हम और उसी प्यार के नाते बस यही पूछेंगे कि बात का है ? हमसे कौनो तकलीफ़ है, या हमारा कोई बात बुरा लग गया, या कछु और बात है जो आप एक दम से ऐसा कह रहे हैं ?” लक्की भईया कभी इतना नहीं खुलते थे लेकिन आज तो जैसे अपना दिल ही निकल कर धर दिए थे.
“अरे भईया कैसा बात करते हैं. आपसे हमको भला कभी कोई दिक्कत हो सकता है क्या ? जितना आप हमको मानते हैं उतना ही हम आपका सम्मान करते हैं. बात बस यही है कि हमारी अम्मा को कोई कह दिया कि हम सारा दिन मोटरसाइकिल पर बैठ कर घूमते हैं, पढ़ते वढते नहीं. आज शाम को वो हमारे सामने ये कह कर रोने लगी कि “पिता जी का तबियत सही नहीं रहता, तुम पर ही सब जिम्मेदारी है ऐसा करोगे तो कैसे काम चलेगा. देखते हैं तुम्हारा वो दोस्त आता है तुमको फटफटिया पर बैठा कर ले जाता है, देर रात घर आते हो. अगर नहीं मन लगता तो पढाई छोड़ दो, कोई कम धंधा कर लो.” इतना कह कर वो रोने लगीं. आप तो जानते हैं कि अपना भर हम पढ़ने में लगे रहते हैं. मगर अम्मा को लगता है कि हम सारा समय आपके साथ ही बिताते हैं, इसीलिए......”इसके बाद साधो चुप हो गया.
“अम्मा कह दीं ना कि नहीं जाना हमारे साथ तो कल से आप नहीं घूमेंगे हमारे साथ. रोज थोडा देर आप से कॉलेज में बातचीत हो जाया करेगा. बाक़ी पढाई पर ध्यान दीजिए. हमारा क्या है हम तो साला मौज काट कर पिता जी का बिजनेस सम्भाल लेंगे मगर आपको कुछ बड़ा करना है. कल से सारा ध्यान पढ़ने पर लगाइए....चलिए अब चला जाए बहुत रात होगया.” इसके बाद कुछ बोल पाना लक्की भईया के बस का नहीं था. साधो भी चुप चाप उनके पीछे चल दिया. साधो को घर छोड़ने तक दोनों के बीच कोई बात ना हुई.
साधो को घर छोड़ते वक़्त लक्की भईया ने जेब से फोन निकला और साधो को कहा “साधो जी, एक बात याद रखिएगा लक्की का बात ही इतना बड़ा है कि सब कोई यकीन नहीं कर पाता. बाक़ी हम झूठ नहीं बोलते. ये देखिए आपकी भाभी के साथ हमारी तस्वीर.” साधो ने देखा तो सच में करिश्मा के साथ लक्की भईया कि प्यार मोहब्बत वाली तस्वीर थी. साधो हाथ जोड़ दिए लक्की भईया के सामने. फिर दोनों मुस्कुराते हुए अपने अपने रस्ते चले गए.
साधो को घर छोड़ने के बाद लक्की भईया फिर जादो के रूम पर चले आये. खूब शराब पी और रात वहीँ सो गए. हाँ इन सब के बीच एक बात यह हुई कि लक्की भईया ने साधो को घर छोड़ने से जादो के यहाँ शराब पीने और सोने तक अपना चश्मा नहीं उतारा. शायद वो चाहते नहीं थे कि लक्की जो सबके भईया हैं उनकी कमजोरी कोई जान पाए.
उस रात के बाद कभी कभी कॉलेज में दोनों की मुलाकात हो जाया करती थी. लक्की अब खुद ही साधो से दूर रहता था. साधो की अम्मा भी ये देख कर खुश थीं कि उनके बेटे ने उनकी बात मान ली. कुछ महीनों तक ऐसा ही चलता रहा. फिर अचानक से साधो ने कॉलेज आना छोड़ दिया. एक दो दिन लक्की ने उसे खुद से खोजा मगर जब वो नहीं मिला तब उसने यादो से उसके बारे में पूछा..
“अरे कवि जी, आज कल ये साधो नहीं दिख रहे, आपको पता है क्या कि कहाँ हैं ?” पानवड़िए की दुकान पर सिगरेट सुलगते हुए लक्की भईया ने यादो जी से पूछा.
“अरे भईया आपको नहीं पता क्या ? उनके पिता जी हॉस्पिटल में एडमिट हैं. काफ़ी सीरियस हैं” इतना सुनना था कि लक्की भईया के हाथ से सिगरेट और उनका होश दोनों गिर गया.
“अजीब चूतिये हो यार, इतना बड़ा कांड हो गया और तुम साले मुंह में पान दबाये चुप बैठे रहे. अब बताओ कौन से हास्पिटल में दाखिल हैं वो” लक्की भईया ने यादो जी को दो चार आशीर्वाद सुनते हुए बुलेट को किक मारी.
“अरे अब हमको क्या पता कि आपको इसका खबर नहीं. गलती हो गया. वो सरकारी हॉस्पिटल में दाखिल हैं” जादो जी भी लक्की भईया के पीछे लपक लिए. थोड़ी देर बाद दोनों हॉस्पिटल के बाहर थे. अन्दर दाखिल होते ही साधो जी माथा पकड़ कर बैंच पर बैठे दिख गए.
“क्या साधो जी, मने पराया ही कर दिए आप तो. इतना सब हो गया और आप साला हमको बताना भी सही नहीं समझे” इतना सुनते ही साधो को लगा जैसे महादेव सामने आगये हों. कमज़ोर पड़ चुके साधो जी पूरी तरह बल से भर गए. उठते ही उन्होंने लक्की भईया को गले से लगा लिया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगे.
“अरे अरे, महराज रो काहे रहे हैं, अंकल कैसे हैं ये बताइए पाहिले.” लक्की भईया ने साधो की पीठ सहलाते हुए कहा.
“ठीक नहीं हैं भईया, डॉक्टर कहते हैं आपरेसन करना होगा नहीं तो जिन्दा नहीं बचेंगे. भईया हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं, कुछो समझ नहीं आ रहा.”
“भगवान का शुकर है, आप तो इस तरह रो कर हमको डरा ही दिए थे साधो जी.”
“इसमें शुकर क्या है भईया, आपरेशन में बहुत पईसा लगेगा हम उतना जमा नहीं कर पा रहे हैं, अम्मा अपना एक आधा जो गहना था वो भी बेच दी तब्बो नहीं हो पा रहा.”
“अरे साधो जी, आदमी की साँस चलती रहनी चाहिए पईसे का क्या है वो तो जादू है कहीं से आता है कहीं चला जाता है. आपका बड़ा भाई आगया है ना. बताइए केतना पईसा कम है.” लक्की भईया ने साधो को पूरी हिम्मत दी.
“डेढ़ लाख अभियो कम है भईया.” डेढ़ लाख सुन कर लक्की भईया ने ना जाने क्यों राहत की साँस ली.
“चलिए आप जाइए डॉक्टर को कहिये तयारी करे हम एक घंटा में पईसा ले कर आते हैं.” इतना कह कर लक्की भईया बिना देर किए जादो के साथ वहां से चले गए. इधर साधो हाथ जोड़े खड़ा रहा और एक कोने में खाड़ी साधो की अम्मा ये सब देखती रहीं.
इधर साधो के कहने पर डॉक्टर ने ऑपरेशन की तैयारियां शुरू कर दीं. एक घंटा बीत गया था मगर लक्की भईया का कोई अता पता नहीं मालूम पद रहा था. उनका फोन भी बंद आरहा था. बात परेशां होने वाली थी लेकिन साधो परेशान नहीं था उसे पता था कि लक्की भईया अपनी बात से नहीं पलटेंगे.
“अरे यार माफ़ करना थोडा देर हो गया. ये लीजिए पईसा, और शुरू करवाइए आपरेसन.” अचानक से आई लक्की भईया की आवाज़ ने वहां के ग़मगीन माहौल में ख़ुशी का रंग भर दिया.
“बहुत बहुत शुक्रिया भईया.”
“अरे शुक्रिया आदाब का लेन दें होता रहेगा आप पाहिले ससुरे डॉक्टर को पकड़िये और उसे अपरेसन शुरू करने को कहिये.” लक्की भईया के कहने पर आँखों में आंसू भरे हुए साधो जी कैश काउंटर की तरफ भागे.
ऑपरेशन थियेटर के आगे तब तक बेचैनी का माहौल बना रहा जब तक डॉक्टर ने आकर ये नहीं कह दिया कि ऑपरेशन कामयाब रहा और साधो जी के पिता अब खतरे से बाहार हैं. इतना सुनते ही साधो जी ने लक्की भईया को ऐसे देखा जैसे उनके सामने भगवान खड़े हों.
“कैसे आपका धन्यवाद करें भईया. आज कर्जदार बना दिए आप.” साधो जी ने लक्की भईया से लिपटते हुए कहा.
“ऐसा बात है तो हमारा पईसा अभिये वापिस कर दीजिए साधो जी. हमको किसी का मदद कर के पुन्य कमाने का शौख़ नहीं है. हम तो आपको छोटा भाई मान कर अपने बड़े होने का फ़र्ज़ ऐडा किए हैं, इसमें शुक्रिया आभार अभिनन्दन कहाँ से घुसा रहे आप. साला करोडपति का शो चल रहा है का ?” लक्की भईया के इस मज़ाकिया अंदाज़ से साधो जी अपनी भरी हुई आँखों के साथ मुस्कुरा दिए.
“बेटा हमको माफ़ कर दो, हम तुमको बहुत बुरा भला कहे हैं. एक माँ का दिल अईसा ही होता है. मगर हमको ई नहीं पता था कि हम दोस्त को दोस्त से नहीं भाई को भाई से अलग कर रहे हैं.” कोने में खाड़ी अम्मा ने लक्की भईया के आगे हाथ जोड़ते हुए माफ़ी मांगी.
“अरे अम्मा ई का कर रही हैं, पहिलहीं बहुत बड़े पापी हैं ऊपर से आप हाथ जोड़ कर पाप चढ़ा रही हैं. बाक़ी माँ का गाली भी आशीर्वाद होता है. आपका आशीर्वाद मिला इससे ज़्यादा क्या चाहिए.” सब कुछ ठीक हो चुका था. लक्की भईया को अब जाना था उन्होंने जेब से एक छोटा सा फोन निकला और एक नं दयाल किया.
“हाँ यादो, कुछ कर नहीं रहे तो हमको ले जाओ हस्पताल से. हाँ अब सब ठीक है. हाँ ठीक है तुम आओ हम इहें हैं.” इतना कह कर लक्की भईया ने फोन काट दिया. जब वो फोन पर बात कर रहे थे तो साधो जी ऑपरेशन थियेटर से बहार आगए थे और उनके फोन को गौर से देख रहे थे.
“भईया, ई का है ?
“का साधो जी बौउरा गए हैं ? दीखता नहीं फोन है.”
“हाँ वो तो दीखता है लेकिन ये तो आपका फोन नहीं. आई फोन कहाँ गया आपका. और आपका बाईक तो है न आपके पास तो फिर यादो को कहे बुला रहे हैं ले जाने के लिए.” साधो जी ने लक्की भईया की आँखों में देखते हुए पूछा.
“अरे वो फोन साला खराब होगया. और हमारा गाड़ी जादो जी के पास है न इसीलिए उनको बुलाये हैं.” लक्की भईया झेंपते हुए बोले.
“भईया आपको अच्छे से जानते हैं, आप तो साला झूठ आँखों में ऑंखें दल कर बोलते हैं तो फिर आज सच कहते हुए कहे आंख चुरा रहे हैं. भईया सच बताइए कहाँ है बाईक और फोन.”
लक्की भईया बहुत देर तक साधो जी का बात टालते रहे, मगर जब वो नहीं माने तब लक्की भईया बोले कि “अरे साधो जी का बताएं, साला टाईमिंग ख़राब निकला. कल रात ही पिता जी से बहस हो गया और हम घर से चले आये. कौन जानता था आज उनका जरूरत पद जायेगा. और आप तो जानते हैं हमको झुकना पसंद नहीं. इसीलिए जब सुने कि डेढ़ लाख चाहिए तो चैन आगया ये सोच कर कि जो हमारे पास है उनसे पईसा का जुगाड़ हो जायेगा. इसीलिए बेच दिए फोन और गाड़ी.” ये सब बताते हुए उनके चेहरे पर रत्ती भर भी अफ़सोस नहीं झलक रहा था और इधर साधो जी के आंसू नहीं रुक रहे थे.
“लेकिन भईया वो फोन केतना प्यार से ख़रीदे थे आप और वो बुलेट वो तो आपका आन बान शान था.”
“अरे महराज काहे रो रहे हैं, हाँ सच में हमारा बुलेट हमारा जान था लेकिन आप ससुर हमको जान से भी प्यारे हैं. आपके लिए तो सब कुछ कुर्बान कर सकते हैं. और वैसे भी कुछ दिन का बात है पिता जी खुद मानाने आजायेंगे. फिर अम्मा का गहना हमारा बुलेट और फोन सब वापिस आजाएगा.”
साधो जी को एक बार फिर से लक्की भईया में भगवान दिखे और इस बार तो स्वर्ग से उन पर की जा रही पुष्पवर्षा भी दिखी उन्हें. यादो जी आगए थे, लक्की भईया ने साधो जी से थोड़ी देर के लिए विदा ली और मदमस्त हाथी की तरह झूमते हुए वहां से चले गए. सच में दोस्ती अगर सच्ची है तो उससे पवित्र और सच्चा रिश्ता दुनिया में और कोई भी नहीं. अगर आपके पास भी कोई सच्चा दोस्त है तो उसे सहेज कर रखिए. वैसे भी दुनिया जिस तरह से मतलबी होती जा रही है उस हिसाब से दोस्ती का पुरातन सभ्यता हो जाना तय ही मानिए. बाक़ी तो जो है सो आपे हाथ में ही है.
धीरज झा
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