उ स दिन जालंधर से पटना जा रहा था मैं, 48 सीट नं था, मतलब साईड अपर बर्थ । अपनी आदत के उनुसार उसी सीट पर पसरा पड़ा था । हाथ में थी धरमवी...
"हैलो ।"
"जी, क्या मेरी बात धीरज झा से हो रही है ।" इतना सुनते मैं थोड़ा हड़बड़ा गया । हड़बड़ाने का कारण ये था कि एक तो इतनी मधुर आवाज़ और ऊपर से उस मधुर आवाज़ में लिपटा हुआ मेरा नाम ।
"जी धीरज ही बोल रहा हूँ । आप कौन ?" मेरे फोन को लड़कियों की आवाज़ सुनने की इतनी आदत नहीं थी इसलिए वो कांप रहा था, या शायद मेरे हाथ कांप रहे थे या फिर शायद मैं पूरा ही कांप रहा था । मतलब हम सब मिल कर इतना कांपे कि सामने से कोई परिचय मिले इससे पहले ही फोन कट गया । अब मैं ठहरा घोर शरीफ़ बंदा । बैक काॅल तो कभी की ही नहीं भले ही किसी कन्या का ही नंबर क्यों ना हो ।
सच कहें तो फोन कटने के बाद मन के एक छोर से दूसरे छोर तक बेचैनी नाचने लगी । बेचैन इसलिए नहीं थे कि लड़की फोन की और बात नहीं हुई, बेचैन ये जानने के लिए हो रहे थे कि आखिर एक लड़की हमको फोन क्यों की और की भी तो काट क्यों दी । खैर अभी बेचैनी दूर करने का हमारे पास एक ही रास्ता था और वो था गुनाहों का देवता, और हम फिर से सुधा की आँखों में डूब कर चंदर का मन टटोलने में जुट गये । और इसी तरह रेल ने अपनी गोद में झुलाझुलाते हुए, अपने इंजन से लोरियाँ सुनाते हुए कब मुझे सुला दिया पता ही ना चला ।
सुबह उठा तब तक फोन वाली बात लगभग लगभग भूल चुका था । हाथ मुंह धो कर मैं फिर से किताब में घुस गया । ग्यारह बजने वाले थे, ट्रेन बनारस को छू कर निकल चुकी थी । सुधा चंदर से मिलने आई ही थी तब तक फिर से मेरा फोन चिंघाड़ उठा । नंबर देख कर मुझे गजनी की तरह पिछली रात का सब याद आ गया । मैने फोन उठाया ।
"क्या मेरी बात धीरज झा से हो रही है ।" फिर से वही सवाल और फिर से मेरा वही हाल ।
"जी हाँ मैं धीरज ही बोल रहा हूँ । आप कौन ? कल भी आपका फोन आया था ।" मैं अपनी कांपती आवज़ को थोड़ा स्थिर कर के बोला ।
"जी मैं वोडाफोन कंपनी से सुरुचि बात कर रही हूँ ।" वोडाफोन कंपनी एक नाम ना हो कर जैसे किसी हथौड़े का ज़ोरदार वार हो जिसने मेरे सारे अधसजे सपनों को चूर चूर कर दिया । मुझे पर्दे के पीछे से ज़ोर ज़ोर से हंसने की आवाज़ें आ रही थीं जो शायद मेरी फूटी किस्मत की थी, शायद वो अपनी घरघराती आवाज़ में मुझसे कह रही थी कि "ससुरे तू ने सोचा कैसे कि तुझे किसी लड़की का फोन भी आ सकता है ।"
"अरे मैम मैं ट्रेन में हूँ । बाद में फोन करिएगा ।" मैं चिढ़ गया था शायद इसीलिए मेरी आवाज़ रूखी सी हो गयी थी ।
"ट्रेन में हैं तब क्या हुआ, मुझे दो मिनट बात ही तो करनी है ।" अजीब ढीठ आप्रेटर थी भई ।
"जी मुझे यहाँ आवाज़ सही से सुनाई नहीं दे रही ।" मेरा लहज़ा अब थोड़ा नर्म था । और इसी के साथ फोन भी कट गया ।
पहले तो मैं अपनी किस्मत पर थोड़ा झुंझलाया लेकिन फिर मैने ग़ौर से सोचा । पहली बात तो ये सोची कि साला नंबर मेरा एयरटेल का है तो फिर वोडाफोन से मुझे कोई काहे फोन करेगा, दूसरा मैने ये सोचा कि वोडाफोन से फोन कर भी लिया तो कोई आप्रेटर अपने नंबर से फोन क्यों करेगी । ऐसे ही दो चार सवालों में उलझते हुए मैं 3 बजे तक पटना पहुंच गया । ये गुत्थी सुलझाने की मुझे इतनी जल्दी थी कि हाॅस्टल पहुंच कर सबसे पहले पूरे सौ रूपये का रीचार्ज कराया क्योंकि तब जीओ महाराज की क्रिपा नहीं बरसी थी और एस टी डी काॅल रेट तो नब्बे पैसे पड़ता था । मल्लब आप मेरा कान्फिडेंस देखो कि मुझे जैसे पता हो कि बात करूंगा तो घंटा भर बात हो ही जाएगी इसीलिए सीधा सौ का ही रीचार्ज कराया । इसके बाद अपने कमरे में भागा और फोन निकाल कर वही नंबर डायल किया । अंदाज़ा तो मैं लगा चुका था कि ये किसका नंबर हो सकता है अब बस पक्का करना था कि जो मैं सोच रहा।हूँ ये वही हैं ।
"हैलो ।" फोन उठते ही उधर से आवाज़ आई ।
"जी मैम आपने फोन किया था तब मैं ट्रेन में था । हाँ तो आप क्या कह रही थीं ।"
"जी सर मैं वोडाफोन से बात कर रही हूँ । हमारी कंपनी एक सर्वे कर रही है ।" बात करने का लहज़ा एकदम कस्टमर केयर वाली लड़की वाला ही था ।
"मगर मैम मैं तो एयरटेल यूज़ करता हूँ फिर वोडाफोन की तरफ़ से फोन क्यों ?"
"यही तो सर्वे है सर, असल में हमारी कंपनी जानना चाहती है कि हमारे कस्टमर्स के मुकाबले दूसरी कंपनी के कस्टमर्स उनसे कितना सेटिस्फाई हैं ।"
"जी वैसे तो मैं एयरटेल की सर्विस से खुश हूँ लेकिन आप ये बताईए कि आप वोडाफोन से हैं तो फोन अपने नंबर से क्यों कर रही हैं ?" मेरा सवाल सुन कुछ पल के लिए उधर से आवाज़ ना आई ।
"वो सर हम सर्वे कर रहे हैं ना इसलिए और इसमें हम अपना नंबर ही यूज़ करते हैं ।" इसके बाद फोन कट गया । अभी तक मैं पक्का कर चुका था कि ये किसका नंबर है । मैने नंबर संव किया और अपना व्हाट्सएप खोला । उसी नंबर को चेक किया तो देखा दो लड़कियों की डी पी लगी थी । हालांकि जिनके बारे में मैने सोचा था उनकी तस्वीर भी अभी तक मैने नहीं देखी थी मगर फिर भी अंदाज़ा हो गया था कि ये वही हैं । मैने फिर से वही नंबर मिलाया ।
"आपने सर्वे किये बिना ही फोन काट दिया ?"
"नहीं सर वो नैटवर्क की दिक्कत थी ।"
"अरे दिक्षा मैम (काॅल्पनिक नाम) आपका तो अपना ही नेटवर्क सही नहीं फिर आप कस्टमर को कैसे कन्विंस करेंगी ।"
"साॅरी सर मेरा नाम सुरूचि है दिक्षा नहीं ।" आवाज़ से साफ़ लग रहा था कि वो अपनी हंसी दबा रही हैं ।
"हमें तो दिक्षा नाम ही पसंद है । हम तो इसी नाम से पुकारेंगे ।"
"वो आपकी मर्ज़ी है लेकिन मैं दिक्षा नहीं हूँ ।" उनकी हंसी उनकी आवाज़ में घुल चुकी थी ।
"अच्छा मान लिया लेकिन आपकी व्हाट्सएप डी पी बहुत सुंदर है ।"
"आपने कहाँ से देख ली ?"
"अब डी पी व्हाट्सएप की है तो वहीं से देखूंगा । अच्छा वो सब छोड़िए अब ये बताईए कि आपने नंबर लिया और कहा कि जब आपको लगेगा कि हमारे बीच कुछ है तो आप काॅल करेंगी । और जब आज आपका काॅल आ गया तो फिर अब मैं क्या समझूं ?"
"अरे आप गलत समझ रहे हैं । मैं सुरूचि हूँ ।" हंसी जितनी तेज़ हो रही थी माहौल में भांग उतनी ज़्यादा घुल रही थी । मल्लब पूरा नशा छाया हुआ था मोहब्बत का ।
"अब मान भी लो । कितना भाव खाओगी । वैसे कुछ देर के लिए लगा था कि सच में वोडाफोन से ही बोल रही हैं, कोई कोर्स किया है या जाॅब की है आप्रेटर की ।" मेरा इतना कहना था कि उनकी बंधी हुई हंसी खुल के यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ चारो ओर फैल गयी । वो पल कैद कर लिया था मैने । वो हंसी आज भी गूंज जाती है कभी कभी अपने आप ही ।
"कैसे पहचाना ?" आखिर सुरूचि जी ने कबूल ही लिया कि वो दिक्षा हैं ।
"जिसके फोन का इंतज़ार पिछले डेढ़ साल से था उसे भला कैसे ना पहचानते ।" इसके बाद हंसी खनकी, उसके बाद बातें हुईं और फिर बातें और बातें बहुत सी बातें और आखिरकार दिक्षा जी ने 12 दिसम्बर 2013 को ये मान ही लिया कि उनके मन में मेरे लिए वही है जो मेरे मन में उनके लिए है । और इस तरह वोडाफोन वाली मैडम हमारी प्राणप्यारी बन गयीं ।
प्राणप्यारी, आज हमारे अहसासों को एक हुए पूरे चार साल हो गये, कितना कुछ बदल गया ना इस बीच । मैने तुम्हें कितना बदल दिया, तुमने मुझे कितना बदल दिया, बस कम्बख़त ये दूरियाँ कम ना हुईं हमारे बीच । एक अफ़सोस आज भी मन में खटकता है कि मैं आज भी खुल कर तुम्हारा नाम सबके सामने नहीं ले सकता । मैं जो कुछ हूँ तुम्हारी वजह से हूँ और दुर्भाग्य देखो कि मैं ये कह नहीं सकता कि सब लोग देखो यही है वो लड़की जो हर परिस्थिती में मेरे साथ खड़ी रही । जिसे मेरी हर खुशी में मुझसे ज़्यादा खुशी हुई और जिसने मेरे हर ग़म में मुझसे ज़्यादा आँसू गिराये । बात जब खालिस प्रेम की आती है तो मैं अपना उदाहरण नहीं दे सकता, मैं नहीं कह सकता कि सब देखो 1165 कि.मी दूर बैठ कर भी हम पाँच सालों से प्रेम का ये खूबसूरत रिश्ता ऐसे निभा रहे हैं जैसे हर पल हम हाथ हों । ये दुर्भाग्य ही है प्रेम का कि मैं तुम्हारे गिरने वाले हर आँसू को अपनी मुट्ठी में बंद कर के उसका मोती नहीं बना सकता, तुम्हारी वो मुस्कान जो मेरे लाश हो जाने के बाद भी मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर दे, को अपनी यादों के गुल्लक की खनक नहीं बना सकता । मगर इन सारी बदकिस्मतियों के बाद भी सबसे बड़ी खुशकिस्मती हो 'तुम' जिसका अहसास मुझे कभी अकेला नहीं होने देता ।
तुम अनमोल हो प्राणप्यारी । मैं जिधर चल निकला हूँ उधर का रास्त तुम हो, मेरी मंज़ील तुम हो । आज जितने लोग मेरे इन शब्दों के अहसास से हो कर गुज़रेंगे वो सब इस बात के साक्षी होंगे कि अगर मैं तुमको पा गया तो वो कर दिखाऊंगा जिसका सपना तुम हमेशा से देखती आई हो । क्योंकि मेरी सबसे बड़ी ताक़त हो तुम । काश तुम्हें अपना बना लेना मेरे हाथ में होता तो आज तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में होता । आज चार साल हो गये हैं हमारे और तुम्हारे मन मिले हुए । तोहफ़े के रूप में तुम्हें ये वादा दे रहा हूँ कि तुमने मेरे मन में अपने लिए जो प्यार का समंदर बनाया था उसकी लहरों का उफ़ान कभी कम नहीं होगा । भले ही तुम मेरी किस्मत में रहो ना रहो मगर तुम मेरे पास हमेशा रहोगी । भगवान तुम्हें मुझे मिला दे इसी दुआ के साथ तुम्हें हमारे मिलन की चौथी वर्षगांठ की हार्दिक शुभकनाएं एवं बहुत बहुत बधाई ।
हाँ मैं सबके सामने ये मानता हूँ कि मुझे तुमसे बेइंतेहाँ मोहब्बत है ।
अपनी माँ का दुलारा, सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा
धीरज झा
Keywords :- Vodafone Wali Madam Aur Main, Hindi Story, Love Story, For You, I Love You
COMMENTS