“पपा हमर दू रूपिया दे दीजिए.” चाय की टपरी के पास खड़े उस छोटे से बच्चे ने चाय बनाने वाले की खाकी पेंट खींचते हुए कहा. चाय की उबाल ...
“पपा हमर दू रूपिया दे दीजिए.” चाय की टपरी के पास खड़े उस छोटे से बच्चे ने चाय बनाने वाले की खाकी पेंट खींचते हुए कहा.
चाय की उबाल में अपना ध्यान गड़ाए उस चाय वाले पिता ने थोड़ा चिढ़ते हुए पूछा “कईसन दू रूपया रे ?”
“काल्हे लिए रहे गाहक के लौटाबे खातिर.”
“दुर ससुर, दू रूपया ला कईसे हल्ला मचाया है...ले पकड़..” इतना कहते हुए चाय वाले पिता ने गल्ले से दो रुपये निकाल कर हड़बड़ी में बच्चे की तरफ फेंक दिए. बच्चा गालियों से बेअसर सा कूदता हुआ बगल की दुकान की तरफ भाग निकला.
“लीजिये साहेब आपका दो चाय.” चायवाले ने दो चाय सामने खड़े दो लड़कों की तरफ बढ़ा दी.
“बहुत लेट हो गया यार इस बार.” चाय का कप पकड़ते हुए.
“हां यार, रूम मालिक दो बार टोक चुका है. इस बार तो गलियाएगा.”
“आठ तारीख हो भी तो गया है.”
“पता नहीं इस बार सैलरी क्यों लटकाए हुए हैं.”
“सुना है, आज कल बहुत व्यस्त हैं.”
“हैं तो हैं, कम से कम हम लोगों का मजबूरी तो समझना...” सामने से आई बात ने इस बात को आधे में ही रोक दिया.
“साहेब जी ऊ आपका 90 रूपया बाकी था.” बात चाय वाले की थी. नर्म शब्दों में सख्त तगादा.
“अरे यार 50, 100 के लिए टोका मत करो. दिमाग से निकल जाता है. तुम लिख के रखो 500 हो जाएं तो मांग लेना.” चाय पी रहे दोनों में से एक ने थोडा अकड़ के कहा. चाय वाले ने फिर से चाय के उबाल पर अपनी नजर टिका ली.
ऑफिस में
ऑफिस में
“सर सैलरी कब तक मिलेगी कुछ अंदाजा है?” उन्हीं दोनों में से एक अपने सीनियर से पूछता हुआ
“नहीं यार, मुझे खुद बहुत ज़रूरत है.”
“एक बार आप फोन कर के पूछिए ना कि कब तक आएंगे?”
“पागल हो क्या ! बहुत व्यस्त होते हैं. ऐसे में फोन करने पर वो गुस्सा हो जाते हैं.”
“अरे सर आप खास हैं आपसे गुस्सा नहीं होंगे.” कुछ देर इसी तरह झाड़ पर चढ़ाने के बाद सीनियर मान गया और मालिक को फोन मिला दिया.
“गुड इवनिंग सर.”
“हां, गुड इवनिंग. बताओ क्या बात है?”
“कुछ खास नहीं सर बस वो, वो स्टाफ पूछ रहा था कि सर कब...”
“स्टाफ को कहो अभी दो चार दिन इंतज़ार करे. बिलकुल समय नहीं है.”
“वो सर, सबको ज़रूरत है...”
“यार, सब ऐसे ही कहते हैं 15 20 हजार जैसी मामूली रकम से किसी का काम नहीं रुकता...तुम मैनेज करो, मैं दो चार दिन में आता हूं.”
दोनों पास खड़े सुन रहे थे. मामूली शब्द सुन कर उन्हें बुरा लगा ठीक उसी तरह जैसे चाय वाले को लगा था, जैसे उसके बच्चे को लगा था. असल में दोष अमीर का नहीं होता, ये सब दोष है अहमीयत न पता होने का. इंसान के लिए जिस चीज़ की अहमीयत नहीं होती उसे वो दूसरों के लिए भी मामूली ही मानता है.
धीरज झा
COMMENTS