वो मिट्टी का घरौंदा था जिस लिए बच्चों डांटा था ये घर है मेहनत का अब गले लगाओ ना वो बात थी बचपन की सब खेल तमाशे थे अब सपना हकी...
वो मिट्टी का घरौंदा था
जिस लिए बच्चों डांटा था
जिस लिए बच्चों डांटा था
ये घर है मेहनत का
अब गले लगाओ ना
अब गले लगाओ ना
वो बात थी बचपन की
सब खेल तमाशे थे
सब खेल तमाशे थे
अब सपना हकीक़त है
इसे देख तो जाओ ना
इसे देख तो जाओ ना
खुराफाती उमर थी वो
सपने भी कच्चे थे
सपने भी कच्चे थे
तुम भले पिता थे तब
पर हम तो बच्चे थे
पर हम तो बच्चे थे
क्या बात समझते हम
कि सब तुम्हें चिढ़ाता है
कि सब तुम्हें चिढ़ाता है
मिट्टी का घरौंदा ये
सपना याद दिलाता है
सपना याद दिलाता है
एक उमर बीत गयी थी
हम पौधों को बढ़ाने में
हम पौधों को बढ़ाने में
डर सा लगता होगा
सपनों के पास भी जाने में
सपनों के पास भी जाने में
अब सपना हकीक़त है
तो पिता हैं दूर खड़े
तो पिता हैं दूर खड़े
ये खेल जो किस्मत के
होते हैं अजीब बड़े
होते हैं अजीब बड़े
जितनी भी भर लो तुम
मुट्ठी खाली की खाली है
मुट्ठी खाली की खाली है
इन नन्हीं हथेलियों पर
किसने रेत संभाली है
किसने रेत संभाली है
बस टीस सी चुभती है
एक उदासी सी लगती है
एक उदासी सी लगती है
उन आंखों का सपना अब
इन हाथों ने पूरा किया
इन हाथों ने पूरा किया
बस एक टीस यही तो है
तुम्हें हम से छीन लिया
तुम्हें हम से छीन लिया
अपने सपने को
कभी देख भी जाओ ना
कभी देख भी जाओ ना
हम मूंदते हैं आंख अपनी
तुम सपने में आओ ना
तुम सपने में आओ ना
इस मिट्टी के घरौंदे को
पैरों की छुअन दे जाओ ना
पैरों की छुअन दे जाओ ना
कितना कुछ लौटता है
अब तुम भी वापस चले आओ ना
अब तुम भी वापस चले आओ ना
धीरज झा
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