REPRESENTATIVE IMAGE/PIXABAY ब चपन (Childhood) एक जादू के खेल की तरह है, जो सामने होने पर हैरानी और ये कैसे हुआ वो कैसे हुआ ये सब सोचन...
REPRESENTATIVE IMAGE/PIXABAY
बचपन (Childhood) एक जादू के खेल की तरह है, जो सामने होने पर हैरानी और ये कैसे हुआ वो कैसे हुआ ये सब सोचने में निकल जाता है, मगर बाद में अफसोस होता है कि खेल के मज़े क्यों नहीं लिए । सारी उम्र बेहद उलझे हुए से रहते हैं हम । बचपन में हमेशा सोचते हैं कि बड़े होने पर ये करेंगे वो करेंगे और बड़े होने पर पछताते हैं कि बचपन बढ़िया था । कभी स्कूल (School) जेल लगती थी और आज उसी जेल की यादों को सोच कर भावुक हो जाते हैं ।
माता पिता (Parents) भी कम उलझे हुए नहीं होते । बचपन में बच्चे सबके साथ बैठना चाहते थे, बोलना बतियाना चाहते थे, खेलना चाहते थे तब उन्हें समय की अहमियत का पाठ पढ़ाते हुए सारा दिन किताबों में घुसे रहने का उपदेश दिया करते थे मगर जब वही बच्चा बड़ा होकर समय की अहमियत समझ गया और सारा दिन बस काम काम करता रहता है तो सिर पकड़ कर रोते हैं ये कह कर कि बच्चे समय नहीं देते । बच्चा तो कच्ची मिट्टी है जैसा ढालेंगे ढल जाएगा । बच्चे बिना सिखाए पल जाते तो अनाथ होना सबसे पड़ा शाप क्यों होता इंसान के लिए ।
बचपन एक खाली कैनवस की तरह है । पहले उसमें मां बाप रंग भरते हैं और फिर एक समय के बाद चित्र अपने आप बनने लगता है । अब अगर शुरू में रंग सही भरे गये तब तो चित्र भी सही ही बनेगा लेकिन अगर चित्रकार उलझे तो सब गजर मजर, कुछ पता ही नहीं लगेगा कि आखिर चित्र में बनाया क्या गया है । वो वाकई में एक ज़माना था जब बच्चे यूं ही पैदा हो जाया करते थे । पढ़ने पढ़ाने का इतना पता था नहीं, मेहनत पर ज़्यादा विश्वास था । इसीलिए लोग सोचते थे परिवार में जितने लोग होंगे उतनी ज़्यादा मेहनत करेंगे । लेकिन अब गरीब से गरीब इंसान भी बच्चों को पाना चाहता है, लेकिन पढ़ाई अब सस्ती भी कहां रही इसलिए बच्चे पैदा करना और उन्हें पालना अब बस यूं नहीं रहा बल्कि एक कला बन गया है ।
कितने बच्चे पैदा करने हैं, उनकी परवरिश कैसे करनी है लोग ये सब पहले से सोचे बैठे हैं। लेकिन उलझने आज भी हैं । क्योंकि ये कोई पौधे नहीं जो कुछ महीनों में मेहनत का फल देने लगें और मां बाप जान पाएं कि उन्होंने जो खाद पानी दिया वो उनके मन लायक पौधे को बढ़ा पा रहा है या नहीं। यहां सालों लग जाते हैं ये जानने में कि बच्चों को जैसा सिखाया उसका उन पर क्या असर हुआ ।
दरअसल हमें ये सीखना होगा कि बच्चे शुरु में पतंग की तरह होते हैं जिन्हें मां बाप सही दिशा में उड़ाते हैं लेकिन एक समय के बाद इस पतंग को पक्षी बन जाने देना चाहिए जिससे वो अपना आसमान, अपनी दिशा, अपनी हवा खुद चुन सके । ऐसा रहेगा तो वो पक्षी उड़ने की कोशिश करते हुए जब भी थकेगा तब मां बाप के पास ही लौटेगा लेकिन आप जानते हैं कि पतंग एक बार कटी तो फिर आपके पास लौट कर कभी नहीं आएगी ।
बचपन अच्छा था इसलिए आपके अंदर अगर बचपना है तो ये अच्छी बात है । इसे बनाए रखिए क्योंकि ये आपके बच्चों को सही दिशा देने के बहुत काम आएगा ।
हर बाल मन को बाल दिवस (Children's Day) की शुभकामनाएं 🙏
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