हर इंसान कमीना है । बस उसके कमीनेपन की हदें अलग अलग हैं । इसी तरह पिता भी कमीना ही होता है (कम से कम अपने दोस्तों की नज़र में तो होत...
हर इंसान कमीना है । बस उसके कमीनेपन की हदें अलग अलग हैं । इसी तरह पिता भी कमीना ही होता है (कम से कम अपने दोस्तों की नज़र में तो होता ही है ) । कौन ऐसा पिता होगा जिसने अपनी जवानी के दिनों में वो सब कमीनेपन से भरी हरकतें नहीं की होंगी जो आज हम या हमसे छोटे कर रहे हैं ।
आंखों पर चश्मा और सूरत पर गंभीर भाव भंगिमा लिए सीधा साधा दिखने वाले ये बाप नाम के प्राणी अपने ज़माने में मस्ती खोरी, लंठई, खुरफ़ात, या टंटे जोतने में हमारे भी बाप रहे होंगे । अगर याद हो तो याद करना कि जब छोटे थे तो कभी अपने पिता को उनके किसी अच्छे दोस्त के साथ गप्पें लड़ाते सुना होगा । द्विअर्थीय और कतई घनघोर अश्लील बातें कर के उन पर ठहाके लगाते सुना होगा । हालांकि उन दिनों ना उनकी उन बातों की समझ थी और ना इस बात की कि क्यों वो 'चलो बाहर जा के खेलो'कह कर या गरिया कर हमें वहां से भागा देते थे । ये समझ तो तब आई जब हम भी वैसे ही लतीफे सुना कर दोस्तों की महफ़िलें लूटने लगे ।
लगभग हर पिता का कोई ना कोई निक नेम होता है और इस निक नेम के पीछे छुपा होता है कोई बेहद मज़ेदार किस्सा । कभी ये निक नेम उस लड़की के नाम पर होता है जिसे पिता पसंद तो करते थे लेकिन कभी अपना इज़हार ए मोहब्बत कर ना पाए । कभी ये निक नेम पड़ा होता है उनकी किसी कमज़ोरी के नाम पर तो कभी बहादुरी के नाम पर । जितने निक नेम उतने ही किस्से । आज जो ये तुम्हारे सामने चौड़े से सिगरेट का धुआं उड़ा रहे और ये मोटे मोटे पग बना रहे ना ये भी कभी तुम्हारी तरह ही छुप छुप के सुट्टे खींचते रहे होंगे, दारु पीने के लिए हज़ार बहाने बनाये रहे होंगे ।
हर लौंडा कुछ गलत कर के आता है और दो झूठ बोल कर सोचता है कि उसने तो बाप को बना दिया । मगर लौंडे भूल जाते हैं कि जो कुकर्म ये करने की सोचे भी नहीं होंगे वो सब ये बाप लोग पचा के बैठे हैं । बाप यूं ही नहीं कहा जाता इन्हें । देखो एक होता है गुरु जो सिखाता है और एक होता उस गुरु का भी गुरु, उसी को कहते हैं बाप । तो जान लो कि ये भ्रम तो पालना ही मत ना कि बाबा इलायची खा के सिगरेट और पुदीन हरे की गोली चबा कर दारू की महक को मिटा सकोगे । बाप लोग लौंडों की चाल देख कर समझ जाते हैं कि उनकी लगाम को कितना कसना है और कितनी ढील देनी है ।
अरे यार हमारे एक जानने वाले हैं उनके पिता ने तो उनका बदला हुआ कच्छा देख कर ये जान लिया था कि अब लौंडे की शादी करना ज़रुरी हो गया है । शादी हो गयी । फिर हमारे जानने वाले के छोटे भाई तिलमिलाने लगे ये कह कर कि भईया की हो गयी अब हम भी करेंगे । भईया खूब समझाए उनके कि मुन्ना कुछ ना धरा इस शादी वादी में लेकिन मुन्ना कहां मानने वाले थे । फिर क्या था भईया ने कहा चलो तो ऐसा करो कि रात वाला कच्छा खोल के आंगन में फेंक देना । वैसा ही हुआ । कच्छा फेंके बाप देखे और शहनाई बज गयी । तो समझो कि एक बाप सब समझता है बंधु बस कहता नहीं ।
बहुत हुई बकैती, अब ये जान लो कि अगर बाप हमारे ही जैसा है तो उनकी इतनी इज्जत क्यों करें? क्यों मानें ऐसे मनमौजी को अपना आदर्श ? तो सुनो, वो शख्स जिसे अपनी ज़िंदगी, अपनी आज़ादी, अपनी मौज मस्ती, अपनी मनमौजी उतनी ही प्यारी थी जितनी की तुम्हें अभी है । उसने सिर्फ तुम्हारे लिए ये सब कुर्बान कर दिया और बन गया कोल्हू का बैल । उसका आज भी बहुत कुछ करने का मन होता है लेकिन वो नहीं कर पाते क्योंकि वो अगर आज़ाद हो कर ये सब करेगा तो तुम लोगों के नसीब में सिर्फ धक्के ही लिखे जाएंगे । जान लो कि बाप का अपने बच्चों से मुंह मोड़ना किस्मत के मुंह फेर लेने जैसा है गुरु ।
अब बंदे ने तुम्हारी खातिर खुद को पूरी तरह बदल लिया तो इसके बदले उसे तुमसे इज़्ज़त सम्मान मिलना ही चाहिए । वो चाहे तो तुम्हें पैदा कर के चलने लायक बना दे और फिर अपने मन की करने लगे लेकिन यहां तो बाप पूरी ज़िंदगी का ठेका ले लेता है । लाख काबिल हो जाओ लेकिन वो तुम्हारी फ़िक्र करना नहीं छोड़ता ।
रही बात ज्ञान देने और रोक टोक की तो ये भी जान लो कि वो ये सब इसलिए करता है क्योंकि वो चहता है कि जो गलतियां उसने की उन्हें तुम ना दोहराओ । वो जानता है कि हर वो रास्ता जिस पर चलने की तुम सोच रहे हो उसकी मंज़िल कहां है । अश्लील भाषा में कहूं तो पिता बनना उतना ही मुश्किल है जीतना लाल मिर्च को मुंह की जगह कहीं और से खाना । मगर जब पिता बन जाते हैं तो ये सज़ा भी मज़ा ही देता है ।
बाप की तरह मत बनो बे, बाप जैसा चाहता है वैसा बनो । और हर बाप अपने बेटे को सिर्फ एक ही चीज़ बनाना चाहता है और वो है उसका गर्व । बाप का गर्व बनों यार । जो मन आए सो करो लेकिन अंत में खुद को इस काबिल कर लो कि तुम्हें देख कर पत्थर दिल लगने वाले पिता की आंखों से भी आंसू बहें और वो तुम्हें गले लगा के कह सके कि बहुत अच्छे बेटा । एक बाप इससे ज़्यादा कुछ कहता भी नहीं ।
जाते जाते ये भी सुन लो कि आज ग्रहण है और तुम अपने बाप की ज़िंदगी पर भी एक ग्रहण ही हो । ऐसा मैं नहीं बल्कि खुद पिता कहता अपने बेटे को मगर ऐसा वो दिल से नहीं कहता । उसे उम्मीद होती है कि ये ग्रहण नहीं है बल्कि मेरा संकटमोचन है । उसकी उम्मीद को कभी टूटने मत देना । संकटमोचन बनना उसके लिए ग्रहण नहीं ।
और हां हो सके तो कभी मौका मिलने पर अपने पिता को गले लगा कर कहना कि "बापू अब तू आज़ाद है । अगर कोई बदमाशी करने का मन हो, कोई कमीनी सी ख्वाहिश मन में रह गयी हो तो जा पूरी कर ले । मैं हूं यहां संभालने के लिए ।" कह के देखना भाई, भले अगला सामने से गरिया दे लेकिन दिल से इतनी दुआएं देगा कि तिजोरियां कम पड़ जाएंगी उन्हें भरते हुए ।
याद रखना पिता कभी साथ नहीं छोड़ते । ज़िंदा रहते हैं तो छत हैं और ज़िंदा ना रहे तो बादल बन कर छांव कर देते हैं । साए की तरह साथ है पिता जिनके होने का अहसास तब होता है जब हर तरफ अंधेरा हो । ऐसे हर पिता को मेरा प्रणाम है ।
आज का दिन उन्हें मुबारक जिनकी वजह से हम हर रोज़ नया दिन देख पाते हैं ❤❤🙏🙏
बड़े झा सहाब आपको खूब प्यार । देखिए आज किसी को नहीं रुलाया सब मुस्कुरा रहे हैं । आप भी मुस्कुरा दीजिए ।
आपकी ज़िंदगी का बड़ा ग्रहण
धीरज झा
#happyfathersday
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