"काहे मुंह सुथनी जईसन बनाए हो नगेसर ? बाबू सुरधाम का टिकट कटा लिए का ?" खैनी पर अन्तिम ताल ठोकते हुए ऊधो बोला । साथ ही उसने अ...
"काहे मुंह सुथनी जईसन बनाए हो नगेसर ? बाबू सुरधाम का टिकट कटा लिए का ?" खैनी पर अन्तिम ताल ठोकते हुए ऊधो बोला । साथ ही उसने अपनी जानी पहचानी खी खी वाली हँसी माहौल में बिखेर दी ।
"भक मरदे, बाबू हेतना जल्दी नहीं डोलने वाले । हम अपना सुरधाम टिकस कटाने का सोच रहे हैं ।" गम्छिया के छोर को माशूक की ओढ़नी समझ के उंगली में बार बार लपेटता हुआ नगेसर बोला ।
"पगला गये हो ! अभी न बाल बच्चा हुआ न कोनो रंग रंगत देखे आ हेतना जल्दिये निकल लेने का बात सोच लिए । बात का है खुल के बताओ ?"
"बात वात कुछो नहीं ऊधो भाई । बस सोच रहे थे मर जाते तो हम्नियों के नाम पेपर उपर में छपता । लोग हमरा लिए खूब जलूस निकालते । ऐसहूं साला कोन तीर मार रहे हैं ।" किसी चिंतनशील आदमी की तरह नगेसर आकाश की ओर देखते बोला ।
"खी खी खी । बुरखिटरी कहीं के ।" ऊधो ने नगेसर की बात हँसी में उड़ा दी ।
"काहे ठिठिया रहे मरदे । हम कोनो जोंक मारे हैं?"
"औउर नहीं तो का । तुमको लगता है तुम्हारे मरने से हल्ला मचेगा ? लोग कहेंगे महान नगेसरा मर गया चलो जलूस निकाल जाए ?" ऊधो तब तक नगेसर के बगल में बैठ गया था ।
"काहे नहीं हल्ला मचेगा । हमहूं फेसबुक आ टीटर चलाते हैं । देखते नहीं हैं का ! कतना मरने बाला सबके लिए लोग अवाज उठाता है । ऊ सब कोन सोना के बना होता है जो उनके लिए सब बोलता है आ हमारे लिए नहीं बोलेगा ?" नगेसर ऊधो की बात पर चिढ़ गया था सो उसने सारी चिढ़ निकाल दी ।
"तुम नहीं समझोगे रे नगेसर ।"
"तब समझाओ ।"
"तो समझो । देखो तुम हम हैं एक ठो मनुख, बिलकुल साधारन मनुख । आ इस दौर में कोनो मनुख के मरला से केकरो झांटे फरक नहीं पड़ता । फ़र्क पड़बाने खातिर मरने बला का किसी धर्म जाति से होना जरूरी है । बिदेस में मर रहा है तो कम से कम गोरा काला तो होना ही चाहिए । बिना ई लछन के मरने का कोनो फायदा नहीं ।"
"तनी औरो समझाओ ।" नगेसर घुटनों को पेट में सटा कर उस पर कोहनियां टिका कर दोनों हथेलियों के बीच अपना चेहरा टिकाते हुए कहा ।
"देखो इहाँ सब अपना मतलब के लिए हल्ला करता है । अब ई मतलब तब न निकलेगा अगर मरने वाला उनके काम का होगा । साधरान आदमी के मरने से जदि किसी को फरक पड़ता तब दिक्कते का था । अब देख लो हेतना मजदूर भाई मर गया दू महीना में लेकिन किसी को कुछो फरक पड़ा ? तुम तो टीटर फेसबुक सब चलाते हो ना लेकिन कभी ऐसा हुआ कि तुम खुद इन मजदूर का मौत पर दुखी हुए हो?"
"हँ त न, हुए नहीं थे दुखी का । फोटो लगाए थे ।"
"आ कतना देर दुखी रहे ?"
"कतना का, फोटो लगा दिए हो गया न ?"
"बस ई फोटो भर के दुख ही होता है गरीब मरने पर । ट्रेन से कट जाता है आदमी सब लेकिन लोग दुख मनाने के बदले सवाल पूछता है । वहीं कोनो जाति धरम का एंगल निकाल दिया जाए तब देखिए का होता है ।"
"ए भाई त हमरो निकाल दो कोनो एंगल ।" नगेसर उछलते हुए बोला
"तुम्हारा त निकाल देंगे लेकिन मारने बला भी तो कोई चाहिए जो तुमसे ओपोजिट धरम का हो ।"
"अब ई का झोल है ।"
"भक्क ससुर सब समझाना पड़ता है तुमको । देखो बौल बारते हो ना । ध्यान से देखना जब तक करिया आ लाल तार नहीं जुटता तब तक करेंट नहीं पास होता । ललका ललका आ करियका करियका जोड़ने से बौल नहीं बरता है ।"
"अब साला करियका ललका कहवां से खोजें । दुर सार हमको मरना ही नहीं है । जब जमराज आएंगे तभिये मरा जाएगा ।"
"बहुत सही । चलो मनोहरा के दोकान खुल गया है चल के चाय पीया जाए ।"
"पइसा न है ।"
"ए ससुर मर जाते त लाद के थोड़े न ले जाते पइसा । मरने से बचा लिए हैं उहे खुसी में पिला देना ।"
"ए ऊधो भाई तुम्हीं मार दो ना हमको ।"
"भक्क साला, एक ठो चाय खातिर हम सूली चढ़ जाएं । रह्ने दो हमहीं पिलाते हैं चाय ।" इसके बाद दोनों हँसते हुए चाय पीने निकल गए ।
धीरज झा
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