"पापा, हम पहुंच गये ।" एक महिला ने गाड़ी में बैठे बुजुर्ग से कहा । "अं, पहुंच गये ।" बुज़ुर्ग ने जेब से चश्मा निक...
"पापा, हम पहुंच गये ।" एक महिला ने गाड़ी में बैठे बुजुर्ग से कहा ।
"अं, पहुंच गये ।" बुज़ुर्ग ने जेब से चश्मा निकाल कर आंखों पर चढ़ाते हुए बाहर देखा । सबने उसे बाहर निकाला और व्हील चेयर पर बैठा दिया । बुजुर्ग ने उस स्थान के आगे दोनों हाथ जोड़ दिए जहां उसे लाया गया था ।
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इस दिन से कई साल पहले
"पापा मुझे न बड़े हो कर डॉक्टर बनना है । फिर ना मैं आपको कभी सर दर्द नहीं होने दूंगी ।" साहिल का सर दबाते हुए नीति ने भोले मन से कहा था । नीति साहिल की दस साल की बेटी का नाम है । साहिल को मुस्कुराना चाहिए था उसकी बात सुन कर लेकिन उसका तो मन कर रहा था कि वो ज़ोर ज़ोर से रोए ।
'यजमान मुखाग्नि के लिए चलिए ।' पंडित जी के बोलने पर साहिल एकदम से ख़यालों से बाहर आ गया । सर का दर्द तो था लेकिन उसका सर दबाती नीति नहीं थी वहां । वो तो चिता पर लेटी हुई थी इस इंतज़ार में कि कब उसके पापा अपनी नन्हीं गुड़िया के शरीर में आग लगाएंगे ।
नीति के साथ बिताए दिनों की झलकियां एक के बाद एक करके साहिल के आंखों में तैर रही थीं। अभी कल ही की तो बात लगती है जब सुधा के सामने सर झुकाए साहिल लगातार रो रहा था । डॉक्टर जवाब दे चुके थे । बच्ची बच गयी लेकिन सुधा नहीं बच पाई । वो लड़की जिसके लिए साहिल सबसे लड़ गया, जो उसकी ज़िंदगी थी आज लाश बनी उसके सामने पड़ी थी । वो चेहरा जिस पर सजी मुस्कुराहट साहिल की हर परेशानी के बोझ को सर से उतार फेंकती थी उस पर आज अकाल का सन्नाटा पसरा हुआ था । वो एक नज़र सुधा को देखता, फिर बच्ची को देखता और फिर गुस्से में नज़रें नीची कर के रोने लगता । वो अपनी ही बच्ची को बड़ी घृणा की नज़र से देख रहा था । जिसके लिए उसने ना जाने कितने सपने सजाए थे वही बेटी आज उसे अपनी ज़िंदगी का वो पाप लग रही थी, जिसका प्रायश्चित उसे सुधा के रूप में करना पड़ा था ।
जिस शमशान में आज साहिल खड़ा था यहीं पर वो पहले तीन लाशें जला चुका है । पहले पापा फिर मां और तब सुधा को जलाया था । सुधा के बाद उसकी मां कुछ दिनों के लिए रुक गयी थी तभी बच्ची की देखरेख हो पाई वर्ना शायद वो बचती भी ना। साहिल सारा दिन गुमसुम बैठा रहता था । बच्ची की तरफ देखता भी नहीं था। कुछ महीने बाद सुधा की मां चली गयीं । उस दिन बच्ची रोती रही साहिल चिढ़ गया था । हमेशा खुश रहने वाले साहिल के अंदर का हैवान जाग गया था । शायद उस रात वो बच्ची को मार देता अगर सुधा ना आती ।
हां सुधा आई थी । उसने साहिल का सर सहलाते हुए पूछा था "तुम्हारी तो ये तमन्ना थी ना कि बेटी हो। तो अब उसके साथ ऐसा बर्ताब क्यों ?"
"क्योंकि उसने तुम्हें मुझसे हमेशा के लिए दूर कर दिया । वो ना आती तो तुम मेरे पास होती अभी ।" साहिल बच्चों की तरह रो पड़ा ।
"तो मैं अभी भी तो हूं तुम्हारे पास ही ।"
"ऐसे नहीं सच में ।"
"साहिल मैं सच में ही पास हूं । देखो मैं तुम्हें टच कर सकती हूं। और जानते हो ये किसकी वजह से मुमकिन है । हमारी उस बेटी की वजह से । वो सिर्फ एक बच्ची नहीं वो मैं हूं । उसके साथ तुम हमेशा मुझे महसूस करोगे । हम दोनों का सपना है वो। वादा करो कि उसे कोई कमी महसूस नहीं होने दोगे और जैसे हमने सोचा था वैसे ही उसे पालोगे ।" बहुत देर रोते रहने के बाद साहिल ने हां में सर हिलाया था ।
साहिल ने उस दिन पहली बार नीति को गोद में उठाया था । उसे छूना सुधा को छूने जैसा था । उस दिन के बाद साहिल ने नीति को मां पापा दोनों का प्यार दिया था। उसके साथ होने पर साहिल दुनिया का हर दुःख भूल जाया करता था । जीने की एक ही वजह थी साहिल के और वो थी नीति । नीति के लिए बहुत कुछ सोच रखा था साहिल ने । उसे लगा था अब ज़िंदगी के सारे दुः ख ख़तम हो गये लेकिन भला ज़िंदगी भी कभी छीनने से बाज़ आई है ।
कल ही तो स्कूल के लिए निकली थी नीति पापा का माथा चूम कर और दोपहर में साहिल को फोन आया कि स्कूल बस का एक्सीडेंट हो गया । लोग कह रहे थे ड्राईवर ने शराब पी रखी थी । नौ मासूम बच्चे चल बसे । उनमें नीति भी थी । आज सुबह साहिल ने जिस माथे को चूमा था वो अब कहीं दिख ही नहीं रहा था ।
"यजमान मुखाग्नि दीजिए ।" पंडित जी ने फिर साहिल को यादों के भंवर से बाहर ला फेंका। साहिल चौथी चिता को आज आग दे रहा था । शमशान तो जैसे उसका पीछा ही नहीं छोड़ना चाहता था । अब भला उसके लिए दुनिया में बचा ही क्या था । संस्कार में आए सभी लोग एक एक कर के जा रहे थे । साहिल वहां बैठा चुपचाप नीति को स्वाहा होता देख रहा था । इस समय शमशान में आने वाले पार्थिव देहों और उसमें मात्र सांसों और धड़कन भर का फर्क था वर्ना बचा उसके लिए भी कुछ नहीं था दुनिया में ।
"अरे ये बच्ची किसकी है भाई । कबसे पुकार रहा हूं कोई सुन क्यों नहीं रहा ।" एक व्याकुल आदमी के शब्दों ने साहिल का ध्यान अपनी तरफ खींचा । एक झलक बच्ची को देखने के बाद साहिल ने फिर अपना ध्यान नीति की जलती चिता की ओर घुमा लिया । लेकिन कुछ था वहां पर जो साहिल की नज़रें उस बच्ची की तरफ घुमाना चाहता था । थोड़ी थोड़ी देर बाद साहिल की नज़र उस नन्हीं सी बच्ची पर चली ही जाती।
चिता जल चुकी थी । साहिल उठा और जाने लगा मगर उस बच्ची ने उसकी ऊंगली पकड़ ली । इस नन्हीं सी हथेली में इतना ज़ोर कहां से आया था पता नहीं मगर साहिल उससे अपनी उंगली छुड़ा ना पाया ।
"आपका बच्चा है ये ?"
"नहीं बाबा । मैं तो अपनी बच्ची यहां...।" बाबा ने साहिल की बात पर ग़ौर ना किया ।
"पता नहीं किसका बच्चा है । तब से पुकार रहा हूं मगर कोई इसे लेने नहीं आया । मैं भला इसे कहां रखूंगा इस सुनसान शमशान में। प्रभु की ये कैसी लीला है समझ नहीं पा रहा।"
"बाबा अगर आपको दिक्कत ना हो तो इसे मैं अपने साथ ले जाऊं ? आप मेरा कार्ड रख लीजिए । मैं इसे ले जाता हूं कोई खेजते आए तो मुझे फोन कर दीजिएगा या मेरे पते पर भेज दीजिएगा ।" साहिल खुद नहीं समझ पाया कि बिना सोचे वो ऐसा कैसे बोल गया । बाबा को भला क्या दिक्कत होती उसकी तो उल्टा जान में जान आई थी । उन्होंने साहिल को इजाज़त दे दी ।
अजीब खेल है जीवन का । नियती न जाने क्या सोचे बैठी रहती है । जिस शमशान में ज़िंदगियां ख़तम हो जाती हैं वहां से नियती आज साहिल के हाथों एक नई ज़िंदगी की कहानी लिखने जा रही थी ।
साहिल उस बच्ची को घर ले आया । नीति की तरह ही उसकी देखभाल की । बहुत इंतज़ार भी किया लेकिन कोई उस बच्ची को लेने नहीं आया । साहिल समझ गया उसकी नीति लौट आई है ।
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"पापा....।" उस महिला ने बुजुर्ग को उठाया ।
"हां...." बुजुर्ग जैसे यादों के समंदर से गोता खा कर एक दम बाहर निकल आया ।
"पापा हम इतनी दूर से ऐसी जगह पर क्यों आए हैं ? और आप हाथ क्यों जोड़ रहे हैं यहां ।"
"बेटा ये ऐसी वैसी जगह नहीं है। लोग कहते हैं यहां इंसान का वजूद मिटता है मगर बेटा मैंने यहां एक वजूद को जन्म लेते देखा है । किसी दिन मैं यहां से अपने किसी खास को विदा करने के बाद लाश बन लौट रहा था मगर मुझे यहां ज़िंदगी मिल गयी थी । उस दिन अगर वो ना मिलती तो शायद मैं ज़िंदा ना बचता मगर ईश्वर जिसको ज़िंदा रखना चाहता है उसे बहाना भी.... खों खों खों... ।" बुजुर्ग के चेहरे पर मुस्कुराहट बरकरार थी ।
"पापा मैं कुछ समझ नहीं पा रही। अब चलिए गाड़ी में हम घर चलते हैं । तेज़ हवा चल रही है । आपकी तबीयत ...।" बुजुर्ग ने अपनी बेटी की बात पूरी ना होने दी । ।
"बेटा नीति मैं यहां से जाने के लिए नहीं आया । अब मुझे यहीं से चले जाना है । कुछ अपने हैं जो सालों से इंतज़ार कर रहे हैं मेरा ।" इसके बाद बुजुर्ग कुछ ना बोले। बेटी पूछती रही मगर उन्होंने ज़ुबान नहीं खोली । एक राज़ उनके साथ ही चला गया । कहानी जिस शमशान से शुरू हुई थी वहीं आकर रुक गयी ।
धीरज झा
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