#justiceformanishavalmiki, hathras ki beti, rape victim, law against rape, hang the rapists, मनीषा वाल्मिकी, हाथरस घटना, दुष्कर्म, दरिन्दों को फांसी द
राजा की बदहज़मी के चर्चे हैं हर तरफ,
किसी को खबर नहीं ,
क्यों होगी भाई ? गरीब मरा है, तो क्या हो गया । लोग पैदा ही होते हैं मरने के लिए । कौन बात बढ़ गई, क्या बवाल हो गया, आदमी की जात था मर गया तो मर गया । वैसे भी तुम्हें तो राजा के खराब पेट का हाल जानना है, गरीब के भूखे पेट से तुम्हारा सरोकार ही क्या ।
ट्रेंड बहुत कुत्ती चीज़ है । मेरे जैसा लेखक एक पोस्ट लिखता है गलती से पोस्ट हिट हो जाती है । पोस्ट की विषयवस्तु लोगों को इतनी पसंद आती है कि लोग आह वाह सब कर देते हैं । अब मैं क्या करूंगा ? कल से इसी विषय के पीछे हाथ धो के पड़ जाऊंगा । लो भाई इससे जुड़ा हर पहलू पढ़ो । गुंह गोबर सब पढ़ो । मेरी क्या गलती मैंने तो ट्रेंड फॉलो किया है ।
मीडिया भी यही कर रही है । आप जिस विषय पर बोलोगे आपको वही विषय दिखाया जाएगा । मैंने अब हर मुद्दे पर बोलना और लिखना छोड़ दिया है । ना मेरी इतनी पहुंच है कि हज़ारों लाखों लोग पढ़ें और ना यहां किसी के अंदर सच सुनने की हिम्मत बची है, लोग बहिष्कार पर उतर आते हैं और मैं अपना मन मार के सबके मन का लिखूं ये मुझसे हो ना पाएगा । इसीलिए खून काहे जलाना ।
इस पटल का इतना गिरा हुआ दौर मैंने आज तक नहीं देखा था । अच्छे नामी लेखकों को अपनी पोस्ट रीच बचाए रखने के लिए सड़े गले मुद्दों पर लिखते देख रहा हूं इस दौर में । लेखक की गलती नहीं है उसे अपना पाठक वर्ग बढ़ाना है, पोस्ट की हज़ारों लाइक की संख्या को बनाए रखना है, नए वालों को और लोग जोड़ने हैं । ऐसे में हर कोई चाहेगा कि जिसकी डिमांड ज़्यादा है वही लिखा जाए । मैं जानता हूं ऐसे लेखकों को, वो दिल के बुरे नहीं हैं लेकिन बने रहने के लिए लिखना पड़ता है । आप हम ही लिखवा रहे हैं उनसे वैसे ही जैसे मीडिया को ललचा कर हम इतने निचले स्तर तक ले आए हैं ।
दिक्कत ये है कि मीडिया फोकस ना करे तो गलियां खाए और फोकस कर दे तब तो और गलियां खाए । सच बात ये है कि आपको सच सुनने में दिलचस्पी नहीं है ।
एक 19 साल की लड़की को कुछ लड़के मिल कर खेतों में घसीट ले जाते हैं । ये वही लड़की जात है जिसकी इज़्ज़त की दुहाई देते हुए आपने कइयों को स्टार बना दिया । लेकिन इसकी इज़्ज़त तो इसके ही गले में इसका ही दुपट्टा दाल का घसीटी गई । सभी दरिन्दों ने बारी बारी से इसे अपनी हवस का शिकार बनाया । चल ना सके इसलिए रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, बोल ना सके इसलिए जीभ काट दी । मरा जान कर छोड़ गए । लेकिन वो बच्ची 20 दिनों तक लड़ती रही अपनी ज़िंदगी के लिए । सोचिए जीने की कितनी प्रबल इच्छा रही होगी उसकी ।
लेकिन वो हार गई ज़िंदगी से और उसके हारने के बाद हमें पता चल रहा है कि ऐसा भी कुछ हुआ था । क्यों ? क्योंकि हमें ये सब जानने में दिलचस्पी ही कहां है । मीडिया हमसे है हम जो चाहेंगे वही वो दिखाएगी । हमें गांजा पीते बॉलीवुड को देखना था, मीडिया हमें वही दिखा रही है । एक एक पहलु की जानकारी दे रही है हमें । ट्वीटर पर मलिंगा ट्रेंड कर रहा है । लड़की के बारे में इक्का दुक्का को छोड़ कर बाक़ी कोई नहीं बोल रहा । लोगों को बस अपने मतलब की खबर चाहिए । मैं बताऊं अगर ये आपके मतलब की खबर होती ना तो भाई साहब आप अभी सब कामधाम छोड़ कर लगे होते हैशटैग चलाने में, पोस्ट लिखने में ।
सुनने में आया है हाथरस के डीएम साहब कह रहे हैं लड़की की जीभ नहीं काटी गई । तो क्या करना है ? छोड़ देना है अपराधियों को ? ये बहुत बड़ी उपलब्धि है कि लड़की को नोचा गया, रीढ़ की हड्डी तोड़ी गई लेकिन हां जीभ नहीं काटी गई । वाह सर वाह ।
वो बच्ची इशारों में सारी बात कह रही थी । 20 दिन किस दर्द में काटे होंगे उसने ? अब महसूस नहीं होता ऐसा दर्द शायद आदी हो चुके हैं हम । लाशें देखने के लुटी आबरू देखने के ऐसे हैवानों की बढ़ती हिम्मत देखने के । अब हमारे लिए ऐसा हो गया है कि 'अरे चलता है यार ।' मगर ये चलता रहा तो कल को हम आप रोएंगे । मुआवजा मिलेगा परिवार को लेकिन वो लड़की जिसने अभी ज़िंदगी को सही से देखा भी नहीं था क्या वो ज़िंदा हो पाएगी फिर से ?
इतनी पुलिस, इतना प्रेशर, इतनी गर्मा गर्मी, क्या ये सब पहले नहीं हो सकता था ? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कोई ऐसे कुछ करने की सोचने से भी डरे ? कुछ तो करना होगा, इस दर्द को महसूस करना होगा, ऐसा तो होता रहता है वाली मानसिकता से निकलना होगा, मीडिया से सरकार तक को बताना होगा कि हमारे लिए ज़रूरी क्या है, सुरक्षा की ज़रूरत किसे ज़्यादा है ।
ईश्वर उस बच्ची की आत्मा को शांति दें और उन दरिन्दों को ऐसी सज़ा मिले जो एक मिसाल बन जाए ।
धीरज झा
COMMENTS