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किसी को क्या पता 😊
थी क्या असलियत, किसी को क्या पता
वो रात कैसे बीती, किसी को क्या पता
तुम ने जो मुझसे कहा था मुझ तक ही रहा
तुम ने मुझसे क्या कहा था, किसी को क्या पता
तुम औ मैं बिछड़े ये सबने देखा था
रूह ने कब जिस्म छोड़ी, किसी को क्या पता
मैं जो हंसता था, थी महफिल गूंजती
है हंसी अब गायब कहां, किसी को क्या पता
तेरे आंसू पोंछने सब आए थे
मेरा घर डूबा, किसी को क्या पता
चुभ रहे थे टुकड़े जो ज़मीं पर बिखरे हुए
वो मेरा टूटा हुआ दिल था, किसी को क्या पता
जिस फोन से रहता था हरदम चिपका हुआ
हफ्ते भर से है अलमारी में पड़ा, किसी को क्या पता
कोई पूछे हाल तो कहता हूं कि 'सब ठीक है'
जो हो रहा है, वो है कितना गलत, किसी को क्या पता
कैसे कह दूं उम्र भर करूंगा इंतज़ार मैं
मैं आज हूं कल तक रहूं या ना रहूं, किसी को क्या पता
सब सपने टूटे अपने छूटे अब अकेला हूं मैं
'कैसे हो' ये खुद ही खुद से पूछना
कितना लगता है बुरा, किसी को क्या पता
धीरज झा
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'कैसे हो' ये खुद ही खुद से पूछना
कितना लगता है बुरा, किसी को क्या पता
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