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मैं उस बड़े से दरवाज़े तक पहुंचा । धड़कते दिल के साथ बेल बजाई । सामने वो खड़ी थी और मैंने उसे गले लगा लिया, ऐसा सोचना मेरा खयाल था जो मैं लगातार देख रहा था ।
असल बात ये थी कि अभी तक कोई नहीं आया था दरवाज़ा खोलने । मेरे बार बार बेल बजाने पर गेट के बगल से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बाहर निकला । जो इस घर का मालिक तो कहीं से नहीं लग रहा था ।
"बहुत जल्दी में लगते हो बेटा ।" उसने पहला सवाल यही पूछा ।
"हां हूं तो पर आपको कैसे पता ?"
"दरवाजे पर टंगा इतना बड़ा ताला जो नहीं दिख रहा तुम्हें । चाहो तो दीवार फांद लो । हम पुलिस को नहीं बुलाएंगे ।" शायद बंद दरवाज़े पर बार बार घंटी बजाने से ये शख्स चिढ़ गया था । मैं भी तो पागल था जो अब तक नहीं देख पाया कि यहां ताला लटका है ।
"कहां गये ये लोग ?" मैंने ताले को गौर से देखने के बाद पूछा ।
" दो साल पहले तो अमरीका के लिए निकले थे पता नहीं पहुंचे की नहीं पहुंचे ।" उसने फिर टेढ़ा जवाब दिया ।
"और उनकी बेटी ?"
"हमें तो नहीं पता कि इनकी कोई बेटी भी है और अगर होगी भी तो इनके साथ ही गई होगी ।" उसकी बातें अब गुस्सा दिला रही थीं लेकिन उसका पता यही बता सकता था सो मैंने प्यार से मामला निपटाने की कोशिश की ।
"बाबा मेरा जानना बहुत जरूरी है है कि वो लड़की जो यहां रहती थी इस घर में जो इनकी बेटी थी वो कहां है ?"
"चाय पियोगे ?" मेरा बाबा कहना काम कर गया था । ये गरीब इंसान की अच्छाई कहिए या भोला पन लेकिन सम्मान के बदले में ये लोग आपका कोई भी काम कर सकते हैं । मैंने हां कह दी और फिर हम उस बड़े से घर के बगल से होते हुए बाबा के क्वाटर में पहुंच गये ।
"बेटा इनकी कोई बेटी नहीं थी, मेरी बात का यकीन करो । वैसे भी मैं तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा ।" बाबा ने चाय का बर्तन स्टोब पर चढ़ाते हुए कहा ।
"जानते हैं बाबा मैं कुछ दिनों में कलेक्टर की कुर्सी पर बैठने वाला हूं । जितनी तपस्या के बाद मुझे ये फल मिला है ना उसके लिए मुझे इस समय अपने घर वालों के साथ खुशियां मनानी चाहिए । खुद को बहुत बड़ा आदमी महसूस करना चाहिए लेकिन मैं वो सब छोड़ कर इतनी दूर इस शहर में आया हूं । अब आप बताओ कि क्या मैं फिर्फ एक वहम का पीछा करते हुए यहां तक पहुंचा हूं ।" मेरे मुंह से कलेक्टर होने की बात सुन कर बाबा को अपनी पिछली कही बातों पर शर्मिंदगी महसूस हुई । उनके हाथ कांपने लगे । मैं उनके डर को भांप गया ।
"आप डरिये मत मैं यहां साधारण आदमी के रूप में बस उस लड़की को खोजने आया हूं । मुझे बस उसके बारे में जानना है ।" मैंने बाबा के पास जाते हुए उनके कांपते हाथों पर अपना हाथ रख दिया ।
"बेटा मैं सच ही कह रहा हूं । उनकी कोई बेटी नहीं थी चाहो तो कसम खिलवा लो ।" बाबा ने अपने सिर पर हाथ रखते हुए कहा ।
"नहीं बाबा कसम मत खाइये । आपकी बात मैं सच मान लेता मगर मैंने उस लड़की के साथ अपनी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत दौर जिया है । पता नहीं आप कैसे ऐसा कह रहे हैं । खैर आप पर मेरा कोई ज़ोर नहीं । मैं चलता हूं । बस अगर यहां कोई भी लड़की कभी आए तो उसे कह दीजिएगा कि वो लड़का आया था उसे खोजता हुआ जिस पर उसके कई उधार हैं । मैंने उसके साथ गलत किया । मुझे उसे छोड़ना नहीं चाहिए था ।" यही कह कर मैं वहां से चला आया ।
अगले तीन दिनों तक मैं उस शहर में रुका रहा जिसने मुझे ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी देकर उसे मुझसे छीन लिया था । मेरा ज़्यादातर समय उस बंगले के बाहर ही बीतता था जहां से ना जाने कितनी बार मैंने उस लड़की को एक दिन के लिए अलविदा कहा था । हर सुबह वो यहीं से चहकते हुए निकलती होगी मगर आज ऐसे गायब हो गई है जैसे कि वो यहां कभी थी ही नहीं । उस बूढ़े बाबा ने कई बार मुझे देखा और हर बार माथा पीटता हुआ वहां से चला गया । उसके लिए मैं एक पागल था ।
आज मुझे हर वो प्रेम कहानी शिद्दत से याद आ रही थी जहां एक समझदार इंसान प्यार में नौकर से लेकर फ़क़ीर तक हो जाता है अपनी मोहब्बत के लिए । मैं आने वाले कल का डीएम आज इस तरह से सड़कों की धूल फाँक रहा था । अपने तमाम ज़रूरी काम छोड़ कर, इतनी बड़ी खुशी के बावजूद भी अपनों से छुप छुपा कर मैं यहां बैठा उस लड़की का इंतज़ार कर रहा था जिसके वजूद को भी लोग नकार रहे थे ।
उसके लिए मेरा प्यार, मेरे लिए उसका वो दिवानापन, उससे लिया हुआ उधार क्या ये सब एक छलावा ही था ? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता । उसकी वो मासूम सी सूरत छलावा नहीं हो सकती । एक तरफ उसकी फिक्र थी तो दूसरी तरफ उसकी बदनामी का डर भी । मैं किसी से उसके बारे में खुल कर नहीं पूछ सकता था । तीन दिन के इंतज़ार के बाद मैं अब अंदर ही अंदर टूटने लगा था । इंसान कितना भी बड़ा हो जाए लेकिन जब वो हालातों के हाथों टूटने लगता है तो उसे सबसे पहले मां याद आती है ।
मैं भी अपने बिखरे हुए टुकड़े समेट कर घर की ओर निकल आया । आने से पहले उस बूढ़े बाबा को फिर से याद करा आया कि अगर कोई लड़की आए यहां तो उसे कह देना कि उसका उधार चुकाने कोई लड़का आया था ।
अपने मन पर उस लड़की को अकेला छोड़ जाने का बोझ लिए मैं घर आ गया । घर आने पर पता चला कि एक नई तकलीफ़ मेरा शिद्दत से इंतज़ार कर रही है । गांव पहुंचते ही मुझे जो पता चला उसे सुन कर मैं भागता हुआ घर आया । मैं घर में घुसा ही था कि मेरी दोनों बहनें मुझे देखते ही मुझसे लिपट गईं । ऐसा लगा जैसे उन्होंने किसी फ़रिश्ते को देख लिया था । मां सामने पलंग पर बेसुध सी पड़ी हुई थीं ।
बहनों ने बताया कि तीन दिन पहले उन्हें अचानक से दिल का दौरा पड़ा था । सरपंच चाचा अगर समय पर सारा इंतजाम ना करते तो शायद मां आज हमारे बीच नहीं होतीं । सभी लोग तीन दिन से मुझसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे मगर मैं सबकी पहुंच से दूर था । ये ना जाने कैसी परीक्षा थी और ना जाने कितने बोझ मेरे दिल पर लदने बांकी थे अभी । मां को जब होश आया तो उसके आंखों से बह रहे आंसू मेरी आंखों में तैरने लगे । बच्चों जैसी शिकायत थी उसके चेहरे पर । वो बिना बोले ही पूछ रही थी मुझसे कि कहां था तू ? क्या तुझे अपनी मां कि ज़रा भी परवाह नहीं है ?
किस्मत भी मुझे ना जाने कैसे मोड़ पर ले आई थी, जहां मुझे खुद पर गर्व होना चाहिए था वहां मैं लगातार शर्मिंदा हो रहा था । अब उसकी यादों पर मां की फिक्र हावी हो चुकी थी । मुझे मां के लिए अच्छा इंतजाम कर के फिर से मेडिकल के लिए वापस लौटना था ।
"ये क्या कर ली हो मां ? कितनी बार समझाए कि खुद का खयाल रखा करो मगर तुम बात ही कहां मानती हो ।" मां के अच्छी तरह होश में आ जाने के बाद एक दिन मैंने उससे कहा ।
"जब खयाल रखना था तब रख ही ना पाई बबुआ, अब काहे का खयाल । अपना जिम्मेदारी निभा दिए हैं हम । अब तुम अपना निभाना । हमको फरक नहीं पड़ता भले ही…" मां के होंठों पर पर पड़ी पपड़ी उसके आंसुओं से कुछ नर्म पड़ने लगी थी । ये बात उसने किस भाव से कही थी मैं समझ नहीं पाया मगर जो भी कहा था वो मेरे दिल में गहरे से चुभा था ।
"तुम्हारा खयाल रखें, हर वो खुशी तुमको दें जिसके लिए तुम तरसती रही हो ये सब भी हमारा ही जिम्मेदारी है मां । और अभी तो समय आया है ये सब करने का । इसलिए ऐसा कुछ मत सोचना तुम । तुम्हारे बिना हम कुछ भी नहीं हैं अम्मा ।" एक बार मन हुआ कि मां को अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी बता दें । कह दें कि उसका बेटा अफसर लगने वाला है मगर मैंने नहीं कहा । भले ही सबके लिए ये खुशी की बात थी मगर उसके लिए ये धोखा था । ऐसा धोखा जिसने उसे तीन साल से घेर रखा था । इस हालत में वो ये सब बर्दाश्त ना कर पाती ।
"हम कौन सा मरने का मन बना लिए हैं बबुआ । हम तो बस बात कह रहे हैं । बाक़ी जो राम जी का मर्जी है वही होना है ।"
कुछ दिनों में मां ठीक लगने लगी । अब मेरा निकलना ज़रूरी हो गया था । मेडिकल की डेट नज़दीक आ रही थी । मां ने थोड़ा गुस्सा भी दिखाया मगर नौकरी छूटने का डर दिखा कर मैं वापस दिल्ली लौट आया । मां ने मेरी शादी की चिंता भी जता दी थी इसी बीच । ये भी कह दिया था कि हम पर किसी तरह की बंदिश नहीं है । अपने हिसाब से अगर कोई पसंद हो तो बता दें ।
मगर उन्हें क्या बताता कि शादी के लिए जिसे चुना था वो अब कहीं है ही नहीं । खुशबू की तरह आई, ज़िंदगी महका कर एकदम गायब हो गई ।
वो जो लड़की थी वो मेरे जीवन का सबसे बड़ा रहस्य बन चुकी थी । लेकिन मैं इस परिस्थिती से भी निकल रहा था । जो इंसान किसी लक्ष्य के पीछे होता है वो ना चाहते हुए भी निष्ठुर हो जाता है । जैसे कि अभी मैं हो गया था । मैंने अपने सारे अहसास अपने मन में इतने गहरे से दबा दिए थे कि उनकी किसी को भनक तक ना लग सकी । मैं रोता भी कुछ इस तरह था कि मुझे खुद नहीं अहसास होता था कि मैं रो रहा हूं । मेरे आंसू जब अकेले में कभी मेरे गाल सहलाते तब याद आता कि मुझे रोना आ रहा है । पत्थर बना दिया था मेरे हालात ने मुझे ।
सलोनी अभी भी तैयारी में जुटी हुई थी । ट्रेनिंग के लिए मैं मसूरी आ गया था मगर अभी तक वो मेरे कंटेंट में थी । उसे मेरी फिक्र थी । उसे इस बात का अहसास था कि अंदर ही अंदर कुछ दबा रहा हूं । मगर वो क्या है ना उसने कभी पूछा और मेरे बताने का तो सवाल ही नहीं था । वो बस इतना पूछने के लिए मुझे घंटों फोन मिलाती रहती कि मैं ठीक तो हूं । कई बार तो मुझे उसके फोन की सूचना भी मिलती मगर मैं टाल देता । सिर्फ़ उसी से नहीं बल्कि मैं सबसे भाग रहा था ।
एक दिन मेरे नाम से कैंपस में एक फोन आया । मैं अनमने मन से फोन के पास पहुंचा । फोन उठाया उधर से आवाज़ आई और इस आवाज़ ने मुझे जैसे जड़ कर दिया । मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पहले सवाल करूं या माफी माँगू । ये वही थी हां वही तो थी, वही लड़की जिसने इस भीड़ भाड़ वाली दुनिया में मुझे एकदम अकेला कर दिया था ।
क्रमशः
धीरज झा
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