Mirabai Chanu, Tokyo Olympic 2020, Kunjarani Devi, Silver Medal, Success Story, Inspirational Story
जीत के लिए कड़ियां जुड़ती हैं, एक की ललक दूसरे में और दूसरे की तीसरे में, इसी तरह जीतने की चाह आगे बढ़ती रहती है । आज मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) ने टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo olympic 2020) में सिल्वर मेडल जीत कर पूरे विश्व को ये बता दिया है कि हम भारतीय आभाव में भी आगे बढ़ने और खुद को बेहतर बनाने का हुनर अच्छे से जानते हैं ।
आज इस एक जीत ने ना जाने कितनों के अंदर जीतने की आग भरी होगी । ओलंपिक मेडल जीतने वाली मीराबाई भी ऐसी एक आग से प्रभावित हुई थीं ।
गुरु पूर्णिमा के दिन ये मेडल जीत कर उन्होंने अपनी उस गुरु को शानदार भेंट दी है जिन्हें देख कर कभी आठ साल की चानू ने जीतने की कसम खाई थी ।
मणिपुर की हर्क्युलस कही जाने वाली 53 वर्षीय कुंजरानी देवी केवल मीराबाई की ही नहीं बल्कि भारत की आयरन लेडी कर्णम मल्लेश्वरी की भी प्रेरणा रह चुकी हैं ।
14 साल की कुंजरानी ने भी जीतने की कला किसी से सीखी ही थी । आपको कहा ना ये जीत की भूख ऐसी ही है, एक दूसरे को देख कर बढ़ती है ।
एक साधारण से गांव की साधारण सी लड़की ने जब पीटी उषा को मेडल जीतते देखा तो उसने भी ठान लिया कि एक दिन वो भी मेडल जितेगी । उसने फुटबॉल खेला, हॉकी खेली, एथलीट बनने की कोशिश की लेकिन अंत में वो समझ गई कि उसे एक अलग तरह के खेल की ज़रूरत है ।
तब कुंजरानी ने पॉवर लिफ्टिंग को चुना । कुंजरानी ने अपनी दोस्त अनीता चानू के साथ पॉवर लिफ्टिंग खेल में प्रवेश किया और कुछ ही समय में उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया ।
एक दौर ऐसा भी आया जब कुंजरानी ने सिल्वर मेडल्स की बारिश कर दी । उन्होंने 1989 से 97 तक वर्ल्ड वेट लिफ्टिंग चेंपियनशिप में 7 सिल्वर मेडल जीते । 93 में वह चोटिल होने के कारण खेल नहीं पाईं ।
कुंजरानी का ओलंपिक में खेलने का सपना पूरा ना हो सका क्योंकि उन दिनों पॉवर लिफ्टिंग ओलंपिक खेलों का हिस्सा नहीं थी लेकिन उन्हें ओलंपिक मेडल से भी ज़्यादा बड़ा ईनाम मिला । और ये ईनाम था उनके घर वालों का उन पर विश्वास । इन मेडल्स से पहले उनके घर वालों को विश्वास नहीं था कि कुंजरानी इस खेल से अपने भविष्य को सुधार पाएंगी ।
इसके साथ ही कुंजरानी की सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि उन्होंने मीराबाई चानू और कर्णम मल्लेश्वरी जैसी लड़कियों में खेलने और जीतने की ललक जागाई ।
जो आग कभी कुंजरानी ने इन लड़कियों में भरी थी आज वैसी ही आग मीराबाई की जीत ने देश के पिछड़े इलाकों की लड़कियों में भरी होगी ।
7 साल पहले ओलंपिक में नाकामयाब होने वाली मीराबाई ने इस जीत के लिए एक लड़ाई खुद से भी लड़ी । जंगल से जलावन के लिए लड़कियां चुनने वाली ये लड़की अपनी मेहनत के दम पर रियो ओलंपिक में पहुंची लेकिन कुछ खास कमाल ना कर सकी ।
इसके बाद तो ये अंदर ही अंदर टूटने लगी लेकिन इसने खुद से ही एक जंग लड़ी और अपने अंदर की नकारात्मकता को हरा कर आगे बढ़ी । आज उसका नतीजा हमारे सामने है ।
हमारी बेटियों को इस दौर में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है कुंजरानी और मीराबाई जैसी विजेताओं की जो इन बेटियों हारने का लाभ और जीतने की खुशी दोनों का स्वाद बता सकें और इनके मन में आगे बढ़ने की चाह जगा सकें ।
सलाम है इन बेटियों को
धीरज झा
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