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सिनेमा देखते हुए हम अक्सर उसमें इतना खो जाते हैं कि हमें उसमें दिखाए जा रहे दृश्य सच लगने लगते हैं। ऐसे में हम सभी यही चाहते हैं कि नेक दिल हीरो उस बुरे विलेन को मार दे। अब जहां विलेन के लिए लोगों के दिल में इतनी नफरत भरी हो वहां हीरो का हरदिल अजीज होना तो स्वाभाविक है लेकिन सोचिए जरा उस विलेन के बारे में जिसने अपने भयावह किरदार निभा कर भी लोगों का दिल जीत लिया।
हम बात कर रहे हैं उस गब्बर सिंह की जिसके डर से पचास पचास कोस दूर माँ अपने बच्चे से कहती थी कि बेटा सोजा नहीं तो गब्बर सिंह आजाएगा।
कहां पैदा हुए !
एक हट्टे कट्टे शरीर वाला बंदा जिसने इससे पहले सिर्फ एक फिल्म में किरदार निभाया था, जिसे फिल्म में अमिताभ के हाथों मार खाना अपनी तौहीन लगा था, उसका अपनी दूसरी ही फिल्म में इस तरह से दर्शकों के दिलों में घर कर जाना आश्चर्यजनक था, तब तो और जब उसका किरदार एक खूंखार डाकू का हो।
हर तरह के अभिनय में अपना रंग जमाने वाले गब्बर सिंह उर्फ अमजद खान का जन्म 12 नवम्बर, सन 1940 को फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता जिक्रिया खान के पठानी परिवार में आन्ध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में हुआ था।
पिता से विरासत में मिला अभिनय
अमजद खान के लिए अभिनय सीखना मुश्किल नहीं रहा क्योंकि अभिनय की कला उन्हें उनके पिता जयंत उर्फ ज़कारिया खान द्वारा विरासत में मिली थी। इनके पिता फिल्म इंडस्ट्री में खलनायक रह चुके थे । अमजद खान ने बतौर कलाकार अपने अभिनय जीवन की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ से की थी। इस फ़िल्म में अमजद खान ने बाल कलाकार की भूमिका निभायी थी।
वर्ष 1965 में अपनी होम प्रोडक्शन में बनने वाली फ़िल्म ‘पत्थर के सनम’ के जरिये अमजद खान बतौर अभिनेता अपने कॅरियर की शुरुआत करने वाले थे, लेकिन किसी कारण से फ़िल्म का निर्माण नहीं हो सका। सत्तर के दशक में अमजद खान ने मुंबई से अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बतौर अभिनेता काम करने के लिए फ़िल्म इंडस्ट्री का रुख किया।
डैनी के इनकार से खुला किस्मत का दरवाज़ा
उन्हें फिल्मों में पहला रोल 1972 में आई फिल्म हिंदुस्तान की कसम द्वारा मिला। इसके बाद उन्हें 2 वर्षों तक कोई अन्य फिल्म नहीं मिली। ऐसा शायद इसलिए हुआ था क्योंकि नियति उनके लिए कामयाबी तक पहुंचने वाले मार्ग को सुगम बना रही थी। एक नए अभिनेता को शोले जैसी फिल्म मिलना जिसमें उस समय के नामी सितारे अपनी चमक बिखेरने को उताबले हों, किसी चमत्कार से कम नहीं था। ये चमत्कार ही था इस पर पूरा यकीन तब हो गया जब गब्बर सिंह की भूमिका निभाने वाले डैनी ने समय न होने का कारण बता कर इस ये किरदार निभाने से मना कर दिया।
इधर फिल्म निर्देशक, निर्माताओं सहित उन सब की जान आफत में पड़ गयी जो इस फिल्म से जुड़े थे। ऐसे में शोले के पटकथा लेखक सलीम खान ने जावेद अख्तर से अमजद खान के बारे में बात की। सलीम ने अमजद को एक नाटक में अभिनय करते देखा था जिसमें उन्हें अमजद का अभिनय पसंद आया था। जावेद अख्तर जब अमजद खान से मिले तो उन्हें अमजद खान की आवाज भा गयी। उन्हें गब्बर सिंह के किरदार के लिए ऐसी ही आवाज चाहिए थी।
अमिताभ बच्चन से मार नहीं खाना चाहते थे
जाहिर सी बात है किसी नए अभिनेता को गब्बर सिंह जैसा बड़ा किरदार सौंपना एक तरह का जोखिम ही था लेकिन अमजद खान ने किसी को निराश नहीं किया और अपने अभिनय से वो इतिहास रच दिया जिसकी शायद उस समय कल्पना भी नहीं की गयी होगी।
कहते हैं फिल्म के क्लाइमेक्स सीन को फिल्माते वक्त अमजद खान को अमिताभ बच्चन से मार खाना अपनी तौहीन लगता था। उनका कहना था कि जब ये मोटा (धर्मेन्द्र) मारता है तो चलता है लेकिन इस पतलू (अमिताभ) से मार खाना नहीं जमता। गब्बर सिंह के किरदार द्वारा अमजद खान ने इतना नाम कमाया कि उस समय के ब्रिटेनिया बिस्कुट के ब्रांड अम्बेसडर बन गए। ऐसा शायद पहली बार हुआ था कि कोई विलेन विज्ञापन में दिखा था।
शादी का प्रपोज़ अनोखा था
अमजद ने 1972 में शैला खान से शादी की थी। एक बार अमजद शैला के पास गए और बोले क्या तुम जानती हो तुम्हारे नाम का मतलब क्या है।।शैला ने कहा नहीं। उन्होंने कहा इसका मतलब होता है, जिसकी डार्क आंखें हों। बाद में अमजद ने उनसे पूछा। तुम्हारी उम्र क्या है तो शैला ने कहा 14 साल। यह सुनकर अमजद ने कहा जल्दी बड़ी हो जाओ, मुझे तुमसे शादी करनी है। अमजद खान और शैला के तीन बच्चे हैं, शादाब खान, अहलम खान, सीमाब खान।
जब खलनायक को भा गई खलनायिका
वो गब्बर जिसके डर से बच्चे दुबक कर सो जाया करते थे उसके दिल में भी किसी के लिए प्यार था, वो भी ऐसा प्यार जिसके आगे उन्होंने अपने परिवार की फ़िक्र भी नहीं की। हालांकि इस प्यार के लिए उन्होंने अपना घर भी नहीं टूटने दिया। असल में अमजद खान कल्पना अय्यर को प्यार करते थे। कल्पना अय्यर वही हैं जिसने तमाम फिल्मों में बेबस-बेगुनाह नायिकाओं पर बेहद जुल्म ढाए।
भारी डील-डौल वाले गोरे-चिट्टे अमजद और दुबली-पतली इकहरे बदन की सांवली कल्पना अय्यर के बीच देखने-सुनने में खासा अंतर था, लेकिन दोनों में एक गुण समान था। इधर अमजद खान खलनायक के रूप में गरीबों और मजलूमों पर जुल्म ढाते तो उधर कल्पना खलनायिका के रूप में ये काम करती थीं।
अमजद की प्रेमिका कल्पना मॉडल थीं और एक मॉडल की मंजिल फिल्में ही होती हैं। इसलिए कल्पना ने मशहूर कॉमेडियन आई एस जौहर की फिल्म द किस में काम करके अपनी अभिनय-यात्रा आरंभ की। अमजद और कल्पना की पहली मुलाकात एक स्टूडियो में हुई थी, जहां दोनों अलग-अलग फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। फिर परिचय प्यार में बदल गया और ये प्यार तब तक चला जब तक अमजद खान जीवित रहे।
एक एक्सीडेंट और सब खत्म
अमजद खान अपनी कामयाबी के शिखर पर थे, सब कुछ सही चल रहा था लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसके कारण उनकी जिंदगी पूरी तरह से तबाह हो गयी। ये घटना उस वक्त की है जब अमजद खान अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म ‘द ग्रेट गैंबलर’ में काम कर रहे थे। फिल्म की शूटिंग गोवा में होनी थी और उसी के लिए अमजद खान अपने परिवार के साथ गोवा के लिए रवाना हुए लेकिन रास्ते में ही अमजद खान की गाड़ी का भयानक एक्सीडेंट हुआ जिसमें अमजद खान को काफी चोट आई।
अमजद खान की 13 पसलियां टूट गईं जबकि स्टेयरिंग उनके फेफड़ों में घुस गया। इस एक्सीडेंट की वजह से अमजद खान लंबे वक्त तक के लिए व्हील चेयर पर टिक गए। उनका ऑपरेशन करना पड़ा। इसी दौरान अमिताभ बच्चन ने अमजद खान और उनके परिवार की काफी मदद की। अमजद खान इस दुर्घटना से बच तो गए किन्तु इस दौरान उन्हें जो दवाइयां दी गयीं उसके असर से उनका वजन लगातार बढ़ने लगा और यही कारण रहा कि वो 27 जुलाई 1992 को मात्र 52 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह गए।
सच साबित हुई बात
अमजद खान चले गए लेकिन अपनी उस बात पर कायम रहे जो उन्होंने अपनी पत्नी से कभी कही थी। उनकी पत्नी शैला खान के मुताबिक, ‘अमजद हमेशा ही कहते रहते थे, ‘मैं यूं ही 5 मिनट में चला जाऊंगा किसी को पता भी नहीं चलेगा और ना ही किसी से सेवा करवाऊंगा।’
वे भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनके द्वारा निभाये गए दमदार किरदार हमेशा उनकी छवि को हमारे बीच जीवित रखेंगे।
धीरज झा
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